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बाड़मेर पत्रिका.
मैं थार एक्सपे्रस.., दर्द वो ही समझता है जो जानता है। कहता वही है जिसने सुना हो। दिल में उसी के उतरता है, जिसने जीया हों और दवा वो ही तलाशता है जिसके खुद के पांव मेंं बिवाई फटी हों। जिसकी आंखों में आंसू निकले हों वो ही तो पौंछता है। कहते भी है वह आदमी जड़ से निकला है और जमीन से जुड़ा है। 41 साल से जिस दर्द को सरहद के इस पार और उस पार लाखों लोग सह रहे थे। जिस बिछोह को भुगत रहे थे और हजारों दर पर जाकर कह रहे थे, लेकिन कोई जानने की कोशिश तक नहीं कर रहा था। ये लोग कहते भारत-पाकिस्तान के बीच में रेल चलाई जाए, अनसुना कर देते यह नहीं हो सकता। कहते हमारे रिश्तेदारी है,जवाब मिलता अब भूल जाओ। हम तो चला देेंगे पाकिस्तान नहीं मानेगा। जितना दर्द सुनाते उतनी दलीलें। दोनों तरफ के दर्द के मारों के पास केवल अपनी कहानी थी..। शायद दर्द का यह दरिया अब समंदर बन चुुका था। तभी केन्द्र में अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार आई। वाजपेयी के खास सिपेहसालार थे जसवंतसिंह जसोल। मेरे यहीं के जाये जन्मे। इस पार और उस पार दोनों उनकी खुुद की रिश्तेदारियां भी औैर जान पहचान के हजारों-लाखों लोग। इस मरूस्थल की थळियों में बचपन में खेलते-खेलते उन्होंने अमरकोट, मिठी, छाछरो, थारपारकर,सिंध को सुन रखा था। बुआ,मौसी, मामी,नानी को कई बार उन्होंने आंसू पौंछते हुए यह कहते हुए सुना होगा जस्सू…अब कभी हम भी अपने पीहर जा पाएंगे। यह छोटा सा जस्सू जब बड़ा होकर भारत के ऊंचे ओहदे पर पहुंचा तो अपने करीबी प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के कानों तक यह दर्द ले गया। उनको इसी लहजे मेें सुुनाया कि दर्द कितना गहरा है। कितने लोग जुड़े है। यह रेल जुड़ गई तो मुल्कों का तो पता नहीं लेकिन बिछड़े हुए परिवारों का मिलन होगा। वाजपेयी ने जसवंत की बात को तवज्जो दी और पहले मुनाबाव तक ब्रॉडगेज लाइन बिछाने का कार्य प्रारंभ हुआ। 1998 से 2004 का यह दौर था। रेलवे यह तर्क दे रही थी कि यह व्यापारिक लाइन नहीं है। इसमें रेलवे का कोई फायदा नहीं है, जैसा तर्क अभी वह जैसलमेर-बाड़मेर-भाभर में देकर सर्वे बाद नकारात्मक जवाब दे चुुकी है। इस पर जसवंत ने इस बात की ताईद की कि सबकुुछ व्यापार नहीं होता, रिश्ते भी मायने रखते है। ब्रॉडगेज तो बिछ गई लेकिन 2004 में सरकार बदल गई और मनमोहनङ्क्षसह प्रधानमंत्री बने। मनमोहनङ्क्षसह ने बड़ा दिल रखा और जसवंतसिंह की बात भी।। उन्होंने इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया। आखिरकार वो तारीखी घोषणा हो गई जिसका ऐतबार करना मुश्किल था। भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने फिर से मेरे इस मार्ग को शुरू करने का ऐलान किया। जसवंत के मन की मुराद पूरी हुई तो उन्होंने थार एक्सप्रेस से पहले पाकिस्तान के हिंगलाज माता मंदिर जाकर प्रार्थना पूरी होने के लिए दर्शन को इजाजत मांगी। वे एक जत्थे के साथ पाकिस्तान गए औैर पश्चिमी सीमा के इसी मार्ग से अपनी गाड़ी, परिवार व पाकिस्तान से जुड़ाव रखने वाले अपने लोगों को लेकर। इधर भारत ने मीटरगेज की जगह ब्रॉडगेज लाइन बिछा दी। अंतरर्राष्ट्रीय रेलवे स्टेशन मुनाबाव तैयार हो गया। पाकिस्तान ने अपनी कुुचमादी हरकतें करते-करते ही सही लेकिन जीरो लाइन के ठीक पास में रेलवे स्टेशन बना दिया। सवाल यहां तनाव करके विवाद बढ़ाने का कम और रिश्तों को जोडऩे का ज्यादा,इसलिए उसकी हरकतों को नजरअंदाज किया गया। आखिर वो दिन आ गया। 18 फरवरी 2006…., दोनों मुुल्कों में बसे लाखों परिवारों की खुुशी का ठिकाना नहीं था। मैं यानि थार एक्सप्रेस.. पाकिस्तान के कराची और भारत के जोधपुर से पूूरी सुरक्षा के बीच में र वाना हुई। मुुनाबाव पहुंची…जहां मेरे स्वागत का जश्न था। मेरे शुरू होने की खुशी थी। मैैं यानि थारएक्सप्रेस..उस तारीखी दिन को आज भी याद करके आज भी आंसूओं से सरोबार हो जाती है। कल्पना कीजिए 41 साल से बिछड़े हुए दोनों मुल्कों के करीब पंद्रह सौ लोग मेरी गोद(कोच) में बैठे थे। कभी हंसते-खिलखिाते और उत्सााहित होकर कहते हम अपनों से मिलने जा रहे थे दूसरे क्षण अपनी पुरानी यादों में खोते हुए रो पड़ते। आंसूओं के सैलाब से मिश्रित हंसी का यह पल दर्शा रहा था कि ये लोग आज कितने खुश है। मैं यानि थार एक्सप्रेस.. इनकी मन मांगी मुराद थी जो आज हासिल हुई। जब मैने बॉर्डर के गेट को पार कर 41 साल से बंद दरवाजों की चुुप्पी तोड़ी तो सच मानिए मेरे भीतर सवार सैकड़ों लोगों की दिलों की धड़कन रुक गई…अविस्मरणीय पल में डूूब गए। पाकिस्तान में रहने वालों ने भारत में कदम रखा और भारत के लोगों ने पाकिस्तान में तो उनकी पगथळी(पांव के नीचे के हिस्से) को भी विश्वास न हुआ होगा कि यह हो गया…। मैं 41 साल बाद फिर से चल पड़ी थी…शायद बड़ी वजह थी कि कोई जसवंत था…जो बचपन से मुझे जीता था….। (क्रमश:)

Source: Barmer News

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