मैं थार एक्सप्रेस: मुझे आने-जाने दो भारत-पाक
14 साल….728 फेरे…4.5 लाख यात्री….कभी कोई नहीं अनहोनी
बाड़मेर पत्रिका.
मैं थार एक्सप्रेस…मैं वाकई रिश्तों की रेल हूं। मैं मेल और सौैहार्द के लिए चली। मंै रिश्तों और परिवारों के लिए चली। मैं अपनों और अपनत्व के लिए चली। सच मानिए मैंं केवल और केवल इसलिए चली कि मेरे में यात्रा करने वाला राम और रहीम यकीन के साथ कहे कि हम एक है। ऐसा इसलिए कि ये वही लोग थे जो 1947 से पहले एक ही देश में रहते थे। बंटवारा हुुआ…इनके दिल बंटे लेकिन भाईचारा नहीं। इनके दिल मिलने की भी वजह मात्र यह है कि इन सबका दर्द एक सा है…वह दर्द है बिछोह का। अपनों से दूर रहने का। रिश्तों में आई दूूरियों को बरसों-बरस तक सहने का। अपनों से नहीं मिलने का और िबछुड़ते वक्त एक आह छोडऩे का कि क्या पता, अब फिर कभी मिलेंगे या नहीं? मिट्टी से जुड़े इन लोगों को अपने उन गांवों से लगाव हैै जहां बचपन बीता..उन लोगों से जुड़ाव है जिन संग जीए। बस इसी कारण मेरे में सफर करने वाले इन लोगों ने कभी कोई अनहोनी नहीं देखी। 18 फरवरी 2006 को शुरू हुई और 9 अगस्त 2019 तक चली। इस वक्त में मैने 728 फेरे किए, हर हफ्ते चली। करीब 4.50 लाख यात्रियों ने सफर किया। 700 के करीब लोग भारत से पाकिस्तान जाते तो इतने ही पाकिस्तान से भारत आते। सफर के दौरान कोई बीमार हुआ या एक दो बार किसी की तबीयत बिगड़ी वो अलग बात है लेकिन किसी प्रकार की अप्रिय या अवांछित घटना नहीं हुई। दोनों ही देशों ने रिश्तों के मर्म को समझा। सुरक्षा की तमाम एजेंसियां और लोग इतने सक्रिय रहे कि आने-जाने वाले पर पूरी नजर रखी। जीरो लाइन पाकिस्तान हों या फिर मुनाबाव। बिना किसी परेशानी के जांच कर कड़ी निगरानी का नतीजा रहा कि कोई सोच भी रहा था तो उसकी सोच को वहीं विराम देना पड़ा कि नहीं। इस रेल में सबकुुछ सुरक्षित है और कड़ी सुरक्षा। शायद यही मेरी बड़ी खासियत है जिसके बूते मैं आज भी कहती हूं कि मुझे शुरू कर दिया जाए। मैं ऐसी रेल हूं जो दोनों देशों का भरोसा हूं। न मैने तोड़ा न मेरे यात्रियों ने। जो लोग इधर-उधर आए गए वे सारे के सारे इस बात की ताईद करते है। एक साथ बैठकर घर परिवार की बातें की। वैमनस्य का जहर 14 साल में नहीं घुुला होगा,लेकिन मजाल है कि इसकी चर्चा भी रेल में हुई हों। तकरार तो छोडि़ए दोनों ही देशों से आने जाने वाले लोग एक दूसरे से यही कहते रहे कि प्रेम है तो सबकुछ है। दोनों देशों में शांति होनी चाहिए। सुरक्षा के इसी प्रश्न पर मेरा सवाल पाक विस्थापित परिवार के बाबूूदान चारण से हुआ, वे बोले यह रेल मिसाल रही है दोस्ती की। सुरक्षा के सारे प्रबंध आज भी किए जा सकते हैै औैर आने-जाने वालों की जांच भी। तमाम सुरक्षा प्रबंधों की कसौटी पर खरा उतारते हुए फिर से इस रेल को शुरू करने की दरकार है। वे कहते है कि यह रेल हमारे लिए बहुत जरूरी है। दस लाख परिवार दोनों देशों के दुआएं देंगे…(क्रमश:)
Source: Barmer News