जेएनवीयू में ‘भारतीय साहित्य में राष्ट्र की अवधारणा’ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
जोधपुर. इग्नु के प्रोफेसर नरेंद्र मिश्र ने कहा राष्ट्र की कल्पना नई नहीं है…यह वैदिक काल से रही है। इन्हीं परंपराओं से भारतीयता हमारे में विद्यमान है।
वे रविवार को जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के हिंदी व अंग्रेजी विभाग एवं महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केंद्र मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में अयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति का निर्माण हजारों वर्षों में हुआ है।भाषा व उपभाषाओं सब का एक ही भाव है, इन सबने देश को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया। भारत की पहचान सांस्कृतिक एकात्मकता से है। संगोष्ठी के दूसरे दिन दो तकनीकी सत्र व समापन सत्र का आयोजन किया गया। समापन सत्र के मुख्य वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग की प्रो. अल्का पांडेय ने कहा राजस्थान शूरवीरों की धरती है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए कुर्बानी दी है।
राष्ट्रीयता का भाव
तृतीय सत्र में विशिष्ट वक्तव्य देते हुए मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. आईदान सिंह भाटी ने लोक साहित्य में राष्ट्रीयता पर प्रकाश डाला। सत्र की अध्यक्षता करते हुए पत्रकारिता एवं जनसंचार विभागाध्यक्ष प्रो. श्रवण कुमार मीना ने बताया कि राष्ट्र की अवधारणा प्राचीन है, आधुनिक काल से पहले भी राष्ट्र की अवधारणा रही है, भौगोलिक क्षेत्र घटता-बढ़ता है। सत्र में वक्ता डॉ. सूरज राव ने बताया कि राष्ट्रीयता का भाव केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी होता है, चेतक इसका उदाहरण है।
समापन सत्र ये रहे मौजूद
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में पहले दिन लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की प्रोफेसर अल्का पांडेय, प्रो. एस.पी. दुबे, प्रो. कैलाश कौशल, महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केंद्र मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट जोधपुर के निदेशक डॉ. महेंद्र सिंह तंवर, कला संकाय अधिष्ठाता प्रो. किशोरी लाल रैगर, प्रो. रामसिंह आड़ा, प्रो. सुशीला शक्तावत, प्रो. कांता कटारिया सहित देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 200 से अधिक शिक्षक एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।
Source: Jodhpur