जोधपुर. संगीत दिल और दिमाग को सुकून देता है। भारतीय पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ पाश्चात्य संगीत में प्रचलित कुछ वाद्ययंत्र ऐसे हैं जिनको सुनकर आराम मिलने के साथ ही तनाव दूर भाग जाता है। विश्वभर में 13 दिसंबर को वायलिन डे के तौर पर मनाया जाता है। यह दिवस इस वाद्ययंत्र के सम्मान में प्रचलन में आया है। मान्यता है कि मध्यकालीन समय में मध्य एशिया में निवास करने वाले तुर्की और मंगोल जाति के घुड़सवार सारंगी जैसे वाद्ययंत्र को बजाया करते थे। यही आगे चलकर वायलिन बना। इसमें प्रयुक्त होने वाले घोड़े के बालों के कारण आज भी कई जगह इसके तारों में इनका प्रयोग किया जा रहा है। 16वीं शताब्दी के दौरान इटली में वायलिन का आधुनिक संस्करण प्रचलन में आया। 18वीं और 19वीं शताब्दी में इसमें काफी बदलाव आए और आज यह विश्वभर में पसंदीदा वाद्ययंत्र बन चुका है।
सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले जोधपुर में भी इन दिनों युवा वायलिनिस्ट केशव पंवार का संगीत श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। केशव ने बचपन से ही घर में संगीत का माहौल देखा है इसलिए वायलिन की शिक्षा पिता राजा पंवार से सीखा। 10 साल की आयु से उन्होंने इसकी शुरुआत की और आज भी कई घंटे वह इसके रियाज में बिताते हैं। केशव ने बताया कि संगीत में शिक्षा के साथ ही दिल्ली स्कूल ऑफ म्यूजिक के साइमन रॉड्रिक्स से वायलिन की अन्य विधाएं सीखीं हैं। साथ ही प्रभात किशोर से भी बारीकियां जानी। वह मोहम्मद रफी नाइट्स दिल्ली में परफॉर्म कर चुके हैं। यहां बॉलीवुड के वरिष्ठ संगीतकार कल्याणजी आनंदजी ने केशव की हौसला अफजाई की। संगीतकार कुनाल पंडित व सरिता जोशी के साथ संगत की है। अपनी प्रतिभा के चलते केशव सूर्यनगरी सहित अन्य जिलों में, दिल्ली व मुंबई आदि शहरों में कई शोज कर चुके हैं।
कई हस्तियों के साथ कर चुके हैं परफोर्म
केशव के पिता राजा पंवार कई दशकों से वायलिन बजा रहे हैं। अब तक देश विदेश में कई बड़े कलाकारों के साथ मंच पर प्रस्तुति दे चुके हैं। केशव ने बताया कि उनके पिता पिछले 40 वर्षों से वायलिन बजा रहे हैं। उन्होंने ही इस फील्ड में आने के लिए प्रेरित किया।
Source: Jodhpur