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जोधपुर। किसी भी नाबालिग से मजदूरी करवाना कानूनन गलत है। पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर ’उमंग-11’ पुलिस ने गत दिनों अभियान चलाकर कई बाल श्रमिकों मुक्त तो करवाए, लेकिन कानूनी प्रक्रियाओं को पूरी करने की वजह से पीड़ित बाल श्रमिकों को मजबूरन तीन से चार दिन तक किशोर गृह/सम्प्रेषण गृह में रहना पड़ा। इतना ही नहीं इसी गृह में बाल अपचारी (आपराधिक गतिविधियों में पकड़े जाने वाले नाबालिग) भी हैं।

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बयान लेने की प्रक्रिया में लगता है समय

पुलिस किसी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान या फैक्ट्री में दबिश देकर बाल श्रमिक को मुक्त करवाती है और फिर बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया जाता है। कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए पीड़ित बाल श्रमिक को घरवालों के साथ भेजने की बजाय बाल सुधार गृह अथवा सम्प्रेषण गृह भेज दिया जाता है। इनके बयान दर्ज करने के लिए समिति की ओर से दूसरे दिन लेबर विभाग और एसडीएम को पत्र लिखे जाते हैं। यह बयान लेने में समय लग रहा है। अमूमन तीन से चार दिन में बयान हो पाते हैं। तब तक बाल श्रमिक वहीं पर रखे जाते हैं।

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नियोक्ताओं पर एक दिन में नौ एफआइआर

पुलिस ने गत 14 जून से बाल श्रमिकों को छुड़ाने के लिए अभियान शुरू किया था। पहले ही दिन कमिश्नरेट में नियोक्ताओं के खिलाफ नौ एफआइआर दर्ज की थी। मगरा पूंजला में गोकुलजी की प्याऊ के पास सामाजिक न्याय व अधिकारिकता विभाग का बाल सुधार व सम्प्रेषण गृह है, लेकिन आपराधिक गतिविधियों में लिप्त नाबालिगों को रखा जाता है। इनके साथ ही मजदूरी करने से छुड़ाए नाबालिगों को भी इसी इमारत में रखा जाता है। हालांकि बाल कल्याण समिति का दावा है कि दोनों एक ही इमारत में है, लेकिन इन्हें अलग-अलग रखा जाता है। नागौरी गेट कलाल कॉलोनी में रहने वाले व्यक्ति का कहना है कि गत 14 जून को पुलिस ने नाबालिग पुत्र को दुकान पर मजदूरी करते छुड़ाया था। उसे बाल सुधार गृह भिजवा दिया गया था। दो रात व तीन दिन बाद उसे छोड़ा गया था। तब वह घर लौट पाया था।

नाबालिगों से काम करवाया जाना कानूनन गलत है। ऐसे बच्चों को मुक्त करवाकर बाल कल्याण समिति के मार्फत किशोर/सम्पेषण गृह भिजवाया जाता है। दूसरे दिन बयान लेने के लिए लेबर डिपार्टमेंट व एसडीएम को पत्र लिखे जाते हैं। इस प्रोसिङ्क्षडग में कुछ समय लग जाता है। कभी-कभार एक-दो दिन में भी बयान हो जाते हैं।’

विक्रम सरगरा, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति, जोधपुर

नाबालिगों को मुक्त करवाकर किशोर या बाल सुधार गृह में रखा जाता है। वहीं, बाल अपचारी भी बंद होते हैं। लेबर विभाग और एसडीएम के बयान लेने की प्रक्रिया में समय लगने से बाल श्रमिकों को मजबूरन किशोर गृह में रहना पड़ता है। प्रक्रिया में सरलता लाकर बाल श्रमिकों को जल्द से जल्द परिजन या घर भेजा जाना चाहिए।

धनपत गूजर, पूर्व अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति, जोधपुर

Source: Jodhpur

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