बांसवाड़ा। प्रदेश में दस्त जानलेवा बना हुआ है। कुल मौतों में तकरीबन 10 फीसदी बच्चों की मृत्यु दस्त कारण होती है। यानि हर साल 5500 बच्चे दस्त और उससे होने वाली जटिलता ( दस्त के कारण निर्जलीकरण ) के कारण मौत का शिकार बन रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग खुद दस्त को पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का एक मुख्य कारण मानता है। इतना ही नहीं बीते वर्ष जारी की गई एनएफएचएस -5 की रिपोर्ट पर भी नजर डालें तो स्पष्ट है कि राजस्थान में पांच वर्ष के कम उम्र के बच्चों में एक वर्ष में कम से कम 1.46 बार दस्त से ग्रसित होने की आशंका रहती है। गर्मियों और मानसून में बच्चों के दस्त के शिकार होने की संभावना अधिक होती है।
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दस्त के प्रति गंभीरता जरूरी
यदि बच्चा दस्त से ग्रसित है तो बेहद जरूरी है कि कुछ बातों को विशेष ध्यान रखें। यदि दस्त के साथ पानी की कमी ज्यादा लग रही है तो गंभीर चिंता विषय है। ऐसे में तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। इसमें आंखें धंसना, शिशु का सुस्त होना या बेहोश होना, चिकोटी भरने पर त्वचा का बहुत धीरे वापस आने जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं। जो बेहद गंभीर हैं।
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यह रखें ध्यान
– हाथों की साफ-सफाई एवं स्वच्छता
– आसपास के वातावरण की साफ-सफाई एवं स्वच्छता
– पीने के साफ पानी की उपलब्धता
– शौचालय का उपयोग
– 06 माह से छोटे शिशु को सिर्फ स्तनपान करवाना
– 06 माह से बड़े शिशु को समय पर पूरण पोषाहार शुरू करना
– दस्त से ग्रसित बच्चे में ओआरएस और जिंक का उपयोग
दस्त के दुष्परिणाम
– शरीर में पानी की कमी
– बच्चों में कुपोषण
– शिशु मृत्यु
विभाग सक्रिय
प्रदेश में बच्चों को दस्त से बचाने के लिए विभाग सक्रिय है और इसके नियंत्रण के लिए ’सशक्त दस्त नियंत्रण पखवाड़ा’ जीरो डायरिया डेथ का लक्ष्य लेकर चला रहा है। यह पखवाड़ा 17 से 31 अगस्त तक चलाया जाएगा। इसमें आमजन को दस्त से सचेत रहने के साथ ही दवाएं भी उपलब्ध कराई जाएंगी।
प्रदेश में कुल बच्चों की मौत में नौ फीसदी का कारण दस्त है। आंकड़ा तकरीबन पांच हजार प्रतिवर्ष है। आमजन को जागरूक करने और मृत्युदर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से पखवाड़ा चलाया जा रहा है।
– डॉ राहुल डिंडोर, डिप्टी सीएमएचओ, बांसवाड़ा
Source: Jodhpur