जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या सहयोगिनी पद के लिए महिला के विवाहित होने की शर्त को असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने सरकार को नियमों में उचित संशोधन करने की स्वतंत्रता दी है, जो महिला अभ्यर्थियों से शादी के बाद अन्यत्र जाने की स्थिति में सेवाएं समाप्त करने की अंडरटेकिंग लेने को अधिकृत करती है।
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न्यायाधीश दिनेश मेहता की एकल पीठ में याचिकाकर्ता मधु की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मिनी कार्यकर्ता और सहयोगिनी के चयन की पात्रता पर सवाल उठाया और कहा कि इन पदों के लिए केवल विवाहित महिला को ही पात्र मानना मनमाना और असंवैधानिक है। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में मौलिक महत्व का प्रश्न यह है कि क्या किसी अभ्यर्थी के साथ उसकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है या उसे सार्वजनिक रोजगार से वंचित किया जा सकता है? पीठ ने कहा कि यह अविवाहित महिलाओं के लिए यह भेदभावपूर्ण है और अपमानजनक भी है। यह प्रथम दृष्टया अवैध, मनमाना और भारत के संविधान की मूल योजना के विरुद्ध है, जो समानता की गारंटी देता है।
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परिपत्र में विवादास्पद स्थिति
पीठ ने कहा-कोर्ट यह देखने के लिए बाध्य है कि सरकार ने परिपत्र में विवादास्पद स्थिति को शामिल करके भेदभाव का एक बिलकुल नया मोर्चा, जिसकी संविधान के निर्माताओं ने कल्पना या विचार भी नहीं किया था, खोल दिया है। वर्तमान मामला एक ऐसा मामला है, जिसमें महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को एक नया पहलू दिया गया है। केवल यह तथ्य कि कोई अभ्यर्थी अविवाहित है, उसे अयोग्य घोषित करने का कारण नहीं हो सकता।
मनमाना और असंवैधानिक
कोर्ट ने कहा कि अविवाहित होने के आधार पर एक महिला को सार्वजनिक रोजगार से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत एक महिला को दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने के साथ एक महिला की गरिमा पर आघात है। वैवाहिक स्थिति या आंगनवाड़ी में काम करने के लिए विवाहित महिला की स्थिति शायद ही किसी उद्देश्य को पूरा करती है। किसी महिला की शादी करने की शर्त पूरी तरह से अचेतन है और सार्वजनिक रोजगार के लिए आवेदन करने और पाने के महिला के अधिकार का उल्लंघन है और इसे मनमाना और असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।
नीति निर्माताओं ने कभी सोचा, तब क्या होता?
नीति निर्माताओं से कई प्रश्न एकल पीठ ने कहा कि राज्य के नीति निर्माताओं से कई प्रश्न पूछे जा सकते हैं-यदि अभ्यर्थी उसी गांव या आसपास के लड़के से शादी करती हैं तो क्या होगा? क्या होगा यदि एक विवाहित महिला आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में नियुक्ति के बाद दूसरी जगह चली जाए? क्या होगा यदि एक महिला का पति महिला के माता-पिता के घर में रहने का फैसला करता है? क्या होगा यदि, एक महिला विधवा या तलाकशुदा हो जाती है और एक नई जगह पर जाने का फैसला करती है? और क्या होगा अगर, कोई महिला शादी ही नहीं करना चाहती! ये कुछ स्थितियां हैं जो किसी न किसी मामले में सामने आ सकती हैं। राज्य ऐसी किसी भी स्थिति को न तो पहले से टाल सकता है और न ही किसी महिला को सिर्फ इसलिए नौकरी का दावा करने से रोक सकता है क्योंकि वह विवाह बंधन में नहीं बंधी है।
Source: Jodhpur