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पुरुषोत्तम रामावत
बाड़मेर/सिवाना। किले के परकोटे में तालाब…अकल्पनीय। यह सोच आज के इंजीनियर्स की नहीं रेगिस्तान में छोटे से कस्बे सिवाना में विक्रम संवत 1077 के एक शासक की रही जिसने आक्रमण और युद्ध की स्थिति में दुर्ग के भीतर बसे लोगों के लिए पानी का संकट न हो इसके लिए किले के परकोटे में ही एक ऐसे अद्भुत तालाब का निर्माण करवाया जिसका करिश्मा देखिए 1000 साल में पहाड़ी पर बने इस तालाब को बारिश में छलकते तो देखा तो लेकिन रीतते कभी नहीं।

2 भाग में बंटा
सिवाना दुर्ग पर संवत 1077 में परमार वंश के अंतिम शासक कुंतपाल ने भांडेलाव तालाब का निर्माण करवाया। एक तरफ पत्थरों की पक्की दीवार एवं तीन तरफ पहाड़ी है। तलाब दो भागों में बंटा है। एक तरफ पेयजल व दूसरे भाग में अन्य कार्य के लिए पानी का उपयोग में लिया जाता था। दुर्ग के परकोटे में बसे लोग इसका उपयोग करते थे। करीब 1400 की आबादी उस वक्त बताई जाती है। करीब 70 वर्ष पूर्व सिवाना की आबादी बढ़ने पर लोग परकोटे से बाहर बसने शुरु हुए।

बेजोड़ उदाहरण
इतिहासकार जीवराज वर्मा ने बताया कि तालाब पड़ाही पर है, इसलिए पानी नहीं सोखता। अरावली की पहाड़ियों के इस इलाके में सर्वाधिक बारिश होती है। तलाब दो भागों में है। यह परंपरागत व पुरातात्विक पेयजल स्त्रोत का बेजोड़ उदारहरण है।

बुजुर्ग ग्रामीण भंवरलाल ओझा ने बताया कि सिवाना परकोटा में आबादी 1400 की थी। इस तालाब का पानी ही काम में लेते थे। तालाब का पानी रीतते कभी नहीं देखा न बुजुर्गें से सुना।

Source: Barmer News

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