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रतन दवे @ बाड़मेर . राज्य में लोकतंत्र के उत्सव को महोत्सव के रूप में महिलाएं मनाती है। 2018 के चुनावों में 74.66 प्रतिशत वोट औरतों के पड़े जो पुरुषों के मुकाबले अधिक थे,लेकिन दूसरी तरफ मनरेगा की स्थिति देखें तो प्रदेश में करीब 43 लाख महिलाएं मजदूरी कर रही है, जिनको पेट पालने के लिए आज भी सिर पर तगारी, धूप और पांवों में छाले की जिंदगी गुजारनी पड़ रही है। सर्दी, गर्मी और मौसम की मार में ये 18 से 100 की उम्र तक की महिलाएं कहीं नाडी खोद रही है तो कहीं तालाब की मिट्टी हटा रही है। जिसके बदले इनको प्रतिदिन 255 रुपए मिल रहे है और वो भी 100 दिन। प्रदेश में 2 करोड़ 48 लाख महिला मतदाताओं में 43 लाख मनरेगा मजदूरी का दर्शाता है कि 20 प्रतिशत के करीब महिलाओं के सिर पर तगारी है। 100 दिन के रोजगार की गारंटी बाद 265 दिन इन महिलाओं के पास रोजगार भी नहीं है।
तगारी का विकल्प नहीं तलाशा
2007 में मनरेगा योजना प्रारंभ हुई,इसे 15 साल से अधिक हो गए है। इन मजदूर महिलाओं के लिए सिर पर तगारी का भार डालने के बाद बदलाव नहीं हुआ। ऐसे में आज भी मिट्टी खोदने और पत्थर ढोने की कठोर मजदूरी इनसे करवाई जा रही है।
हैण्डीक्राफ्ट को जोड़ें
कई बार इसके बारे में लिखा है कि हैण्डीक्राफ्ट को मनरेगा में जोड़ा जाए। खेती के काम जो रोजमर्रा में महिलाएं करती है उनको प्राथमिकता दी जाए। ताकि तगारी और रेत उठाने के काम से उनको निजात मिले लेकिन यह नहीं हुआ है। -लता कच्छवाह, सामाजिक कार्यकर्ता
यहां दो लाख से ज्यादा महिला मजदूर
जिला- मनरेगा मजदूर
भीलवाड़ा-314724-
बांसवाड़ा-306312-
डूंगरपुर-276426-
नागौर 258612-
अजमेर-248050-
बाड़मेर-219243-
उदयपुर-203569-

Source: Barmer News

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