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जोधपुर। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में वर्ष 2012-13 में हुई शिक्षक भर्ती में कथित तौर पर धांधली सामने के बाद तत्कालीन राज्यपाल कल्याण सिंह के निर्देश पर विवि प्रशासन ने 2017 में सिण्डीकेट की बैठक आयोजित कर 34 अयोग्य शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया। वर्ष 2020 में विवि ने फिर से सिण्डीकेट आयोजित करके खुद ही पिछली सिण्डीकेट के आदेश को निरस्त कर सभी बर्खास्त शिक्षकों को वापस नौकरी दे दी। मामला हाईकोर्ट में भी विचाराधीन था, इसलिए विवि प्रशासन ने न केवल राजभवन के आदेशों को धत्ता बताया वरन् हाईकोर्ट की भी अवमानना की।

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शिक्षक भर्ती का मामला अब भी राजस्थान हाईकोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन विवि प्रशासन ने शिक्षकों को स्थायी भी कर दिया और पदोन्नतियां भी दे दी। विवि ने इसकी भी गली निकाली है। वह अपने हर आदेश के नीचे एक लाइन लिख देता है कि यह आदेश/निर्देश शिक्षक भर्ती के संबंध में हाईकोर्ट के होने वाले निर्णय के अधीन रहेगा।

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5 साल तक राजभवन की चुप्पी
विवि ने शिक्षक भर्ती 2012-13 को बचाने के लिए कई जगह कुलाधिपति व राज्यपाल के आदेशों की अवहेलना की, लेकिन बीते पांच साल में राजभवन ने चुप्पी साधे रखी। राजभवन की ओर से 2018 में भेजी गई प्रो. पीके दशोरा कमेटी की जांच रिपोर्ट को विवि ने अब तक सिण्डीकेट में नहीं रखा, लेकिन राजभवन ने आज तक विवि से इस संबंध में जवाब-तलब नहीं किया है।

तीन सदस्यीय कमेटी ने की थी जांच
वर्ष 2017 में राजभवन ने 26 शिक्षकों को अयोग्य माना। इसके साथ विवि प्रशासन को एक पत्र लिखकर अन्य अयोग्य शिक्षकों की भी साथ में जांच करने को कहा था। विवि के तत्कालीन कुलपति डॉ. आरपी ङ्क्षसह ने राजभवन आदेश की पालना में प्रो. औतारलाल मीणा, प्रो. एसके शर्मा और प्रो. बीएम शर्मा की जांच कमेटी बनाई। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 14 मई 2017 को सिण्डीकेट बैठक करके 34 शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया। ये शिक्षक हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट ने निर्णय आने तक इनकी सेवाएं समाप्त करने पर स्टे दे दिया था, लेकिन विवि के तत्कालीन कुलपति प्रो. पीसी त्रिवेदी ने सितम्बर 2020 में एक सिण्डीकेट बैठक करके एजेंडा आइटम 34 के जरिए 28 शिक्षकों की सेवाएं ही बहाल कर दी। शेष 6 शिक्षकों को अन्य कारणों से बहाल नहीं किया।

Source: Jodhpur

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