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राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने केंद्रीय विधि राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के खिलाफ 2010 में दर्ज भ्रष्टाचार के एक मामले में अधीनस्थ अदालत के अग्रिम जांच के आदेश को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने एफआईआर निरस्त करने से इनकार करते हुए मामले को अधीनस्थ अदालत को विधि सम्मत पुनर्विचार को भेजा है। याचिकाकर्ता केंद्रीय राज्य मंत्री मेघवाल ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम मामलों की विशेष कोर्ट के 8 जुलाई 2014 के आदेश को चुनौती दी थी। जिसमें कोर्ट ने एसीबी की क्लोजर रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए जांच एजेंसी को आगे की जांच के लिए निर्देश दिए थे। मामला वर्ष 2007 का है, जब मेघवाल बतौर जिला कलक्टर, चूरू में पदस्थापित थे।

अर्जुनराम मेघवाल के खिलाफ शिकायत

अर्जुनराम मेघवाल के खिलाफ की गई शिकायत में आरोप था कि 22 जून, 2007 को सैनिक बस्ती, चूरू के पदेन अध्यक्ष के रूप में जिला कलक्टर ने सैनिक बस्ती कुछ भूखंडों के आवंटन के लिए एक समिति का गठन किया। बतौर कलक्टर अर्जुनराम मेघवाल ने व्यावसायिक उद्देश्य के लिए भूखंडों के आवंटन, उनके रूपांतरण और नियमितीकरण के लिए दिशा निर्देश तैयार किए, लेकिन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए भू-आवंटन किया गया।

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प्रारंभिक जांच के आधार पर एसीबी ने 2010 में दर्ज किया मामला

एसीबी ने प्रारंभिक जांच के आधार पर 2010 में मामला दर्ज किया, लेकिन जांच के बाद नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट अधीनस्थ कोर्ट के समक्ष पेश की गई। कोर्ट ने 25 अक्टूबर, 2013 को मामले को फिर से जांच के लिए एसीबी को भेज दिया। मामले की दोबारा जांच के बाद जब फिर से अंतिम रिपोर्ट दी गई।

ट्रायल जज ने नहीं किया सामग्री का मूल्यांकन

जस्टिस प्रवीर भटनागर की एकल पीठ में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता संजय माथुर ने अधीनस्थ कोर्ट के आदेश को विधिक प्रावधानों के विपरीत बताया, जबकि राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता एमए सिद्दीकी ने पैरवी की। पीठ ने कहा कि ट्रायल जज ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री का मूल्यांकन नहीं किया और पहली और दूसरी नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट के निष्कर्षों की जांच किए बिना एक अस्पष्ट आदेश पारित किया।

पीठ ने आक्षेपित आदेश निरस्त किया

पहली और दूसरी नकारात्मक अंतिम रिपोर्ट की सामग्री से पता चलता है कि ट्रायल जज की ओर से तय बिंदुओं पर विशिष्ट निष्कर्ष पहले ही आ चुके थे। ट्रायल जज की ओर से पारित निर्देश अग्रिम जांच के दायरे में नहीं आते, बल्कि जांच या पुन: जांच के दायरे में आते है। पीठ ने आक्षेपित आदेश निरस्त करते हुए मामले को कानून के अनुसार पुनर्विचार के लिए ट्रायल जज के पास भेज दिया और एफआईआर को रद्द करने की प्रार्थना अस्वीकार कर दी।

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Source: Jodhpur

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