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वर्ष 1992, दिसम्बर का महिना, देशभर से रामभक्त अयोध्या पहुंच रहे थे। कारसेवकों के साथ मैं भी अयोध्या पहुंचा। आंदोलन के वक्त का वह दिन मुझे आज भी याद है, जब मौत मेरे पास से होकर गुजरी, लेकिन प्रभु राम की कृपा से बच गया। पुलिसकर्मियों की गोलीबारी में एक गोली मेरे कान के पास से होकर गुजरी, मैं संभला, लेकिन वह गोली मेरे पीछे चल रहे सेठाराम परिहार को लग गई। हम लोग न तो अस्पताल जानते थे और न कोई साधन था। इतना ही नहीं, वहां के स्थानीय लोगों ने भी मदद नहीं की। आखिर डेढ़ घंटे के संघर्ष के बाद सेठारामजी ने दम तोड़ दिया, लेकिन हमारे लिए यह गर्व की बात है कि आज 30-32 साल बाद राम मंदिर का सपना साकार होने जा रहा है। 70 वर्षीय कानराज मोहनोत आज भी राम मंदिर आंदोलन को लेकर जोश से लबरेज नजर आते हैं।

भिखारी के वेश में पहुंचे थे
मोहनोत ने बताया कि आंदोलन के समय जोधपुर से विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा की ओर से अलग-अलग दल बनाकर कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे। जो अयोध्या से करीब 100 किलोमीटर पहले ही उतर गए थे। हम गांवों-जंगलों आदि से होते हुए अयोध्या पहुंचे थे। इस दौरान, सभी कारसेवक भिखारी सहित अलग-अलग वेश बनाए हुए थे। अयोध्या में सेठाराम परिहार व प्रो महेन्द्रनाथ अरोड़ा ने बलिदान दिया। अयोध्या से ट्रेन में दोनों के पार्थिव शरीर जोधपुर लाए। शवों को लाने के दौरान मेरे साथ गणपत शर्मा भी थे।

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ये थे मोहनोत के दल में
मोहनोत के नेतृत्व में 15 स्वयंसेवक ट्रेन से अयोध्या गए थे। इसमें रामद्वारा के संत अमृतराम महाराज, देवराज बोहरा, रेखाराम, सुरेन्द्रसिंह कच्छवाहा, घनश्याम डागा, गणपत शर्मा, नेमीचंद कवाड़, डॉ. खेत लखानी आदि शामिल थे। मोहनोत ने बताया कि यह केवल मंदिर ही नहीं, बल्कि राम मंदिर आंदोलन के लिए बलिदान हुए रामभक्तों, श्रद्धालुओं व हर भारतीय के आस्था का प्रतीक है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन मारवाड़ अखाड़ा संघ के बैनर तले जुलूस निकालेंगे व ध्वजा वितरण करेंगे।

(जैसा कि कानराज मोहनोत ने पत्रिका संवाददाता अमित दवे को बताया।)

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Source: Jodhpur

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