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महेन्द्र त्रिवेदी. सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे कि आयुर्वेद में नि: शुल्क औषधि पर राज्य सरकार एक मरीज पर 2 रुपए खर्च कर रही है। बात यहां भी खत्म नहीं हो रही है, ये दो रुपए एक दिन की औषधि के नहीं पूरे साल भर की बजट राशि है। जब दो रुपए में कोई औषधि नहीं मिल रही है, फिर भी सरकार रोगी के एक साल की औषधियों का खर्च दो रुपए मानकर बजट दे रही है। सरकारी अस्पतालों में प्रति मरीज ऐलोपैथी दवाइयों पर खर्च बेहिसाब है। नि: शुल्क दवाइयों की लिस्ट इतनी लंबी है कि अधिकारियों तक को पता नहीं है कि कितनी तरह की दवा आती है। कोई दवा नि: शुल्क आपूर्ति में नहीं आती है तो अस्पताल प्रबंधन अपने स्तर पर दवाइयों की खरीद करता है। यह राशि भी करोड़ों है।

 

 

 

 

 

 

 

ऐसे दिया जाता है दो रुपए का बजट

 

 

 

आयुर्वेद के चिकित्सालय व डिस्पेंसरी में प्रतिवर्ष आने वाले मरीजों की संख्या के अनुरूप उस संस्थान को नि: शुल्क औषधि मिलती है। किसी संस्थान में एक साल में 1500 रोगी आए तो उस संस्थान को 3000 रुपए की नि: शुल्क औषधि उपलब्ध करवाई जाएगी। चिकित्सा संस्थानों को दवा की आपूर्ति साल में दो बार की जाती है।

 

 

 

 

39 साल से कोई बदलाव नहीं

 

 

 

सरकार ने साल 1985 में प्रति रोगी दो रुपए नि: शुल्क औषधि की राशि निर्धारित की थी। जिसमें वर्तमान तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। पिछले 39 साल में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति भी काफी बढ़ी है और इसका लाभ लेने वाले अब भी ज्यादा लोग है। महंगाई तो 39 सालों में कहां से कहां तक पहुंच गई। लेकिन सरकार अब तक आयुर्वेद में प्रति मरीज 2 रुपए ही नि: शुल्क औषधि पर खर्च कर रही है।

 

 

 

 

 

 

सीधे कोई बजट नहीं मिलता

 

 

 

 

आयुर्वेद विभाग बाड़मेर के उपनिदेशक डॉ. नरेन्द्र कुमार का कहना है कि आयुर्वेद चिकित्सा संस्थानों को नि:शुल्क औषधि के लिए सीधे कोई बजट नहीं मिलता है। चिकित्सा संस्थान में एक साल में आने वाले मरीजों की संख्या से दोगुने राशि की औषधियां नि:शुल्क उपलब्ध करवाई जाती है। यह राशि प्रति मरीज के अनुसार दो रुपए है। साल में दो बार राजकीय रसायनशाला से औषधियां प्राप्त होती है।

 

 

 

 

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Source: Barmer News

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