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जोधपुर.
वैश्विक मंदी और ग्वार को वायदा कारोबार एनसीडीईएक्स में शामिल करने से ग्वारगम उद्योग और इससे जुड़ी इकाइयों को संकट में डाल दिया है। इससे प्रदेश के एकाधिकार वाला यह उद्योग चौपट हो गया है। बड़ी संख्या में बेरोजगार मजदूर पलायन को मजबूर हो गए। उद्यमियों ने अपने उद्योग बदल लिए तो कई अब भी इस उद्योग के पुनर्जीवित होने की आस में बैठे हैं।

विश्व में सबसे ज्यादा ग्वार का उत्पादन भारत में होता है। देश में उत्पादित कुल ग्वार का करीब 80 प्रतिशत पश्चिमी राजस्थान में होता है। वर्ष 1962 में राज्य में ग्वार की 2-3 फैक्ट्रियां थी। 1975 में 5 फैक्ट्रियां संचालित होने लगी, जो 1980 में बढकऱ 125 हो गई। वर्ष 2012-13 तक प्रदेश में करीब 300 फैक्ट्रियां संचालित हो रही थी। इसके बाद इस उद्योग में गिरावट आने लगी। वर्तमान में प्रदेश में 30 फैक्ट्रियां जैसे तैसे संचालित नहीं हो रही है। जोधपुर शहर की बात करें तो यहां केवल 8-10 फैक्ट्रियां चल रही हैं।

अन्य देशों में उगाया जा रहा ग्वार
अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया में भी ग्वार की खेती होने लगी है। चीन, ओमान, अमरीकी आदि देशों में तो ग्वार के उद्योग लगने से विदेशों में भारत के ग्वारगम की मांग घट गई है। इसके अलावा, ग्वार के दूसरे विकल्प जैसे सीएमसी व कार्बनिक विकल्प के रूप में इमली, कैसिया आदि उपलब्ध हो गए हैं।


‘ग्वारगम निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक सहयोग समाप्त कर दिया गया । वायदा कारोबार व सटोरियों की वजह से ग्वारगम व ग्वार उद्योगों पर बोझ बढ़ गया है।

भंवरलाल भूतड़ा, अध्यक्ष,
ग्वारगम मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन


‘सरकार वायदा कारोबार से ग्वारगम को हटा दे तो यह उद्योग पुन: फलेगा-फूलेगा। इससे यह उद्योग पटरी पर आएगा व किसानों को उनकी उपज का पूरे दाम भी मिलेंगे।

पुरुषोत्तम मूंदड़ा, सह सचिव,
ग्वारगम मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन

Source: Jodhpur

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