बाड़मेर. जैसलमेर जिले के बईया गांव के ख्यातनाम अंतरराष्ट्रीय मांगणिहार कलाकार अनवरखां बईया को पद्मश्री सम्मान की घोषणा हुई है। अनवरखां देश- विदेश में मांगणिहार-सूफी गायकी के लिए मशहूर हैं।
सम्मान की घोषणा के बाद पत्रिका से अनवर खां ने कहा कि जोधपुर के कोमलदा (कोमल कोठारी) ने अंगुली पकड़कर मांगणिहार कलाकारों को तलाशा और तराशा। यह उसी का परिणाम है। पत्रिका से अनवरखां की विशेष बातचीत के अंश-
पत्रिका- आपको पद्मश्री पुरस्कार की बधाई
अनवरखां- यह बधाई, बाड़मेर-जैसलमेर और पूरे मांगणिहार लोक गायकी की है।
पत्रिका- लोक गायकी में कैसे आए और किस तरह आगे बढे?
अनवरखां- मांगणिहार तो रोता भी सुर में है और मां के पेट से सीखता है। बाप-दादा से सीखा है। मेरे उस्ताद हासमखां देवीकोट रहे और इसके बाद साकरखां, छुग्गाखां, रहमान खां, पेंपाखां,अकबरखां सहित कई कलाकार सिखाते गए और सीखता गया। आज भी पोतों के साथ बैठकर सीखता हूं।
पत्रिका- आप आगे बढऩे का सबसे महत्वपूर्ण समय कौनसा मानते हैं।
अनवरखां- जोधपुर के कोमल कोठारी (कोमलदा) का उपकार हम कभी नहीं भूल सकते। गांव-ढाणी में बैठे मांगणिहार कलाकारों तो तलाशा-तराशा और उनको संगीत के मंच पर उतारा। पद्मश्री मगराज जैन, मनोहरलाल, नेहरू युवा केन्द्र के भुवनेश जैन ने हम लोगों को खूब संबल दिया। तभी हम आगे बढ़ पाए।
पत्रिका- अब तक आपको कितने पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए हैं?
अनवरखां- संगीत नाटक अकादमी का केन्द्रीय व राज्य पुरस्कार, मारवाड़ रत्न, राज्य स्तरीय समारोह में सम्मान, रूस, स्पेन और कई देशों में बुलाकर सम्मानित किया गया है। मेरे से पहले साकरखां को भी पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त हुआ है, यह मेरे लिए गौरव का क्षण होगा।
पत्रिका- कितने देशों में प्रस्तुति व किन उस्तादों के साथ आपकी संगत रही है?
अनवरखां- 50 से अधिक देश में गया हूं। 1982 में पहली बार स्काटलैण्ड गया था। 1985 में अमरीका और फिर तो कई देशों में कार्यक्रम हुए। पंडित भीमसेन जोशी, विश्व मोहन भट्ट, उस्ताद सुल्तानखां, जाकिर हुसैर, कुमोदिनी लछिमा सहित देश के कई बड़े नामों के साथ मंच साझा करने का अवसर मिला है।
फिल्म रंगरसिया में संगीत दिया। कैलाश खेर सहित कई फिल्मी गायकों के साथ रहा हूं। टीवी कार्यक्रमों में पहुंचा हूं, यह लंबा सफर है।
पत्रिका- नए कलाकारों और पीढ़ी को क्या संदेश देंगे?
अनवरखां- गायकी के साथ लायकी रखें। हम लोग मात्र साक्षर हैं, नई पीढ़ी पढे़ और आगे बढ़े। संगीत विरासत है। मांगणिहार हिन्दू-मुस्लिम साझा संस्कृति को जीते हैं, यह हमारा सौभाग्य है। संगीत की उपासना करें।
Source: Barmer News