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विकास चौधरी/जोधपुर. मारवाड़ में इन दिनों झारखण्ड और मणिपुर से आ रहे ‘अमल’ से मनुहार की जा रही है। आमतौर पर यहां मेवाड़ से तस्करी के जरिये अफीम आती है। लेकिन हाल ही में पंचायत चुनावों के चलते मांग बढऩे और मेवाड़ में अफीम की फसल तैयार नहीं होने से तस्करों ने झारखण्ड व मणिपुर में नया बाजार तलाश लिया। हाल ही नारकोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के हत्थे चढऩे वाले तस्करों से पूछताछ में यह खुलासा होने के बाद तस्करों के नए रूट पर ध्यान केन्द्रित कर दिया है।

राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा से जुड़े जिलों में अफीम की पौध पर अभी तक फूल नहीं आए हैं। वहां मार्च-अप्रेल तक डोडा चिराई शुरू होने के बाद ही अफीम की तुलाई होगी। इस दौरान तस्कर किसान से चोरी-छुपे अफीम व डोडा की खरीद करेंगे। यही वजह है कि नीमच, चित्तौडगढ़़, प्रतापगढ़ से इन दिनों अफीम की तस्करी नगण्य हो गई है। जबकि झारखण्ड व मणिपुर की पहाडिय़ों में अफीम की अवैध खेती चरम पर है।

अवैध खेती से तस्करी बढ़ी
एनसीबी सूत्रों के अनुसार मेवाड़ और हाडौती के बारां, झालावाड़ जिलों में अफीम की खेती के लिए किसानों को पट्टे जारी किए जाते हैं। उसी हिसाब से सरकार किसानों से अफीम की उपज लेती है। इसके बावजूद अतिरिक्त उत्पादन और अफीम तुलाई की पैचीदी प्रक्रिया का फायदा उठाकर तस्कर किसानों से चोरी छुपे अफीम हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं।

चालीस से पैंतालिस हजार में फंस रहे कूरियर
ट्रक चालक अथवा स्थानीय ग्रामीण कम मेहनत व समय में हजारों रुपए कमाने के लालच में कूरियर बन रहे हैं। इन्हें प्रति किलो एक से दो हजार रुपए के हिसाब से तस्करी के लिए तैयार किया जाता है। अफीम की खेप देने वाले कभी इनके सामने नहीं आते। वे चालक से ट्रक ले जाते हैं और केबिन या अन्य जगह अफीम छुपाकर ट्रक सुपुर्द कर दिया जाता है। कूरियर को सिर्फ यह पता होता है कि अफीम की आपूर्ति किसे देनी है।

मेवाड़ में अफीम की नई पैदावार मार्च व अप्रेल तक आती है। ऐसे में मणिपुर और झारखाण्ड से अफीम की तस्करी हो रही है। ब्यूरो तस्करों के नए रूट पर ध्यान केन्द्रित किए हुए है।
– विजेन्द्रसिंह, क्षेत्रीय निदेशक, नारकोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो जोधपुर

Source: Jodhpur

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