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मूलाराम सारण.

बाड़मेर. बाड़मेर के राजकीय अस्पताल की पुलिस चौकी के बाहर गुरुवार को भूखा एक युवक आने-जाने वालों के खूब कहने के बावजूद खाने के पैकेट लेने से मना करता रहा। उसकी एक ही जिद थी कि मैं जरूरतमंद नहीं हूं, लेकिन अपना हक मुझे मिलना चाहिए। उसे रसद दुकान से राशन का गेहूं नहीं मिल रहा था।

दुकानदार ने उसे अन्य दुकान का हवाला देते हुए लौटा दिया। इस पीड़ा के कारण उसके आंसू निकल रहे थे।इंद्रानगर निवासी युवक मुकेश दर्जी को पीडि़त देखकर पास में ड्युटी पर तैनात होमगार्ड ने पत्रिका टीम को फोन करके पूरा मामला बताया। टीम ने युवक की बात सुनी। उसे खाना खाने के लिए मनाया। लेकिन वह अड़ा रहा।

उसने कहा कि जब मैं कमा कर खा सकता हूं तो मैं जरूरतमंद नहीं हूं। अगर मैं अभी किसी से खाने का पैकेट लेता हूं तो यह किसी जरूरतमंद के हक पर डाका डालने जैसा ही है। लॉकडाउन में कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें मुझसे ज्यादा जरूरत है।

आप मदद कर सकते हैं तो मुझे राशन के गेहूं दिला दो, जो सभी बीपीएल को मिल रहा है। युवक सिलाई का काम करता है।

रसद अधिकारी को बताया पूरा मामला

पत्रिका टीम ने युवक को साथ लेकर पूरे मामले से जिला रसद अधिकारी को अवगत करवाया। उन्होंने संबंधित डीलर को निर्देश दिए कि चाहे उसका वार्ड अलग हो गया हो।

लेकिन आपकी दुकान पर वह राशन लेकर आया है तो उसे गेहूं तुरंत देना है। अधिकारी के निर्देश पर युवक को अपने हक के गेहूं मिल गए। आसपास के कई लोगों की जुबां पर एक ही बात थी कि गरीब भले ही हो, लेकिन अपना हक की खाने वाले ऐसे लोग भी होते हैं, जिससे वास्तविक जरूरतमंद तक मदद पहुंच सके।

दुकान खोलकर दिए गेहूं

बेरियों का वास स्थित राशन डीलर ने इस दौरान दुकान बंद कर दी। लेकिन रसद अधिकारी के निर्देश पर दुकान को फिर खोलकर युवक को गेहूं दिए गए।

जन्मदिन की खुशी के पैकेट बताए तो खाया खाना

पत्रिका टीम ने उसे हक दिलाने के बाद फिर खाना भी खिलाया। टीम सदस्यों ने खाने का पैकेट देते हुए बताया कि यह पैकेट किसी बच्चे के जन्मदिन पर बांटने के लिए बनाए हैं। ये खुशी के हैं। इसे खाने से किसी जरूरतमंद का हक नहीं छिनता है। काफी समझाने के बाद युवक माना।

Source: Barmer News

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