बाड़मेर. लॉकडाउन के चलते गांवों में लोगों की सालों पुरानी दिनचर्या फिर से आ गई है। अब हथाइयों का दौर हर रोज चलता है तो केर-सांगरी लाने में वक्त गुजर रहा है। चारपाई बनाने के साथ विभिन्न गांवों को पूरा कर वक्त बीता रहे हैं।
इस बार आखातीज भी अधिकांश लोगों के लिए खास रही, क्योंकि सालों बाद वे लॉकडाउन के चलते घरवालों के साथ थे। अमूमन बरसात होने पर ही घर आने वाले ये दिहाड़ी मजदूर इस बार घर पहुंच गए। उन्होंने परिवार के साथ आखातीज मनाई।
केर-सांगरी कर रहे एकत्रित- गांवों में फुर्सत में बैठे लोग केर-सांगरी एकत्रित कर समय व्यतित कर रहे हैं। इस दौरान काम भी हो रहा है तो हथाई भी हो जाती है। अहमदाबाद से गांव आए गिरधारीलाल के अनुसार सालों बाद हाथों से केर-सांगरी लेकर आया और सब्जी व अचार बना इसका लुत्फ उठाया।
कोटड़ी, गुडाळ में लौटी रौकन -गांवों में जाति-बिरादरी और परिवार में आने वाले पुरुष मेहमानों के लिए संयुक्त रूप से ठहरने की जगह कोटड़ी या गुडाळ बनी होती है। अब लॉकडाउन होने से परिवार के लोग कोटड़ी या गुडाळ में बैठ कर वक्त बीता रहे हैं। डूंगरसिंह कोटड़ा के अनुसार कोटडिय़ों में अब दिनभर रौनक रह रही है।
चारपाइयां बना रहे- गांवों में मेहमानों की आवभगत के लिए चारपाई अनिवार्य है। हर घर में पन्द्रह-बीस चारपाई जरूरत होती है। लॉकडाउन में लोग घरों में बैठे चारपाई बना रहे हैं। चारपाई की बुनाई हो रही है। खेतदान नीम्बला के अनुसार चारपाई की बुनाई कर रहे हैं जबकि नई पीढ़ी को भी सीखा रहे हैं।
पुरानी बातों से रू-ब-रू हो रही नई पीढ़ी-बड़े बुजुर्ग लॉकडाउन में है तो युवा भी इसकी पालना कर रहे हैं। ऐसे में दोनों पीढिय़ां घरों में एक साथ एक माह से है। इस दौरान बुजुर्ग पुरानी बातें बता रहे हैं, वे किस्से सुनकर युवा पीढ़ी इतिहास से रू-ब-रू हो रही है।
Source: Barmer News