जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को बलात्कार से गर्भवती हुई पीडि़ताओं को समय पर कानूनी एवं चिकित्सकीय सहायता प्रदान करने के लिए एक गाइडलाइन तैयार करने के निर्देश दिए हैं, ताकि वे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट (एमटीपी एक्ट) के तहत बच्चा पैदा करने या नहीं करने के संबंध में समय रहते अपनी मंशा जाहिर कर सकें।
न्यायाधीश संदीप मेहता तथा न्यायाधीश डा.पुष्पेंद्रसिंह भाटी की खंडपीठ ने यह आदेश राज्य सरकार की ओर से दायर विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिए। राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता पंकज शर्मा ने एकलपीठ के 17 अक्टूबर, 2019 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें 17 वर्षीय बलात्कार पीडि़ता के करीब 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था और पैदा होने वाले बच्चे की कस्टडी नवजीवन संस्थान को देने को कहा था।
एकलपीठ ने अपने निर्णय का आधार लिखते हुए कहा था कि बलात्कार पीडि़ता के जीवन के अधिकार का संरक्षण जरूरी है, लेकिन जन्म लेने वाले बच्चे के जीवन के अधिकार की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। खंडपीठ ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि इस प्रकरण में प्रारंभिक अवस्था में होने वाली देरी के कारण गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन का विकल्प अपनाने की इच्छुक पीडि़ता को अपने अधिकारों को लेकर बहुत निराशा हुई।
पीडि़ता ने समय पर अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की, लेकिन लालफीताशाही और व्यवस्थागत उदासीनता के कारण मामला अनावश्यक रूप से विलंबित हो गया। वह गर्भ, जिसे वह बिना शादी के जन्म देने के लिए मजबूर हुई, अब उसे अनंत काल के लिए मानसिक रूप से परेशान कर देगा। यह आघात उसकी मानसिकता पर अमिट बन जाएगा। हमारे समाज की रूढि़वादी रूपरेखा में उसके वैवाहिक संभावना के अवसरों पर गंभीर असर पड़ेगा।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि पीडि़ता द्वारा जन्म देने वाले बच्चे को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के अनुसार एनजीओ और राज्य सरकार द्वारा सभी वांछित मदद दी जाए। जिला कलेक्टर, जोधपुर को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि बच्चे की देखभाल में किशोर न्याय अधिनियम की पालना की जाए। यदि बच्चा उचित उम्र प्राप्त करने के बाद भी गोद नहीं लिया जाता है तो निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के अनुसार उसे एक अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया जाए।
Source: Jodhpur