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राजस्थान की शौर्य गाथाएं अपनी भूमि और अपनी प्रजा की रक्षार्थ अपने प्राणों का बलिदान देने वालों से ओतप्रोत हैं। इन सबमें मेवाड़ के महाराणा प्रताप की गाथा न केवल सबसे अनूठी है बल्कि उनके शौर्य के आगे सभी अपना शीश नवाते हैं।

राजस्थान के वीर सपूत और महान योद्धा का जयंती पर्व उत्साहपूर्वक मनाया जा रहा है। अपने अद्भुत शौर्य और साहस के लिए विख्यात प्रताप का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। इस साल उनकी जयंती 25 मई को हिंदु तिथि के अनुसार भी मनाई जाएगी। मेवाड़ के महाराजा उदयसिंह और रानी जैवंता बाई के घर में हुआ। उन्हें कीका नाम से भी पुकारा जाता था जो उन्हें भीलों ने दिया था। जिसका अर्थ होता है बेटा।

प्रताप के साथ उनके घोड़े चेतक का नाम भी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। मध्यकाल के सबसे ऐतिहासिक युद्ध के लिए महाराणा प्रताप को याद किया जाता है। हल्दीघाटी के इस युद्ध में उनका सामना मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की विशाल सेना से हुआ था। इसमें करीब 20 हजार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया था। 19 जनवरी 1597 को सिर्फ 57 वर्ष आयु में चावड़ में उनका देहांत हो गया था।

उनके जन्मदिवस के अवसर पर जेएनवीयू के राजस्थानी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर व विवि के बाबा रामदेव शोधपीठ निदेशक डॉ गजेसिंह राजपुरोहित अपनी वीर रस की कविता से महाराणा की दास्तां सुना रहे हैं। ओलखाण शीर्षक इस कविता के माध्यम से उन्होंने राजस्थान के महान योद्धा को नमन किया है। राजस्थानी भाषा साहित्य में एमएम व पीएचडी डॉ राजपुरोहित की जस रा आखर, राजहंस, आत्मदर्शन, सुजा शतक, राजपुरोहित : आदिकाल से आज तक नामक शोध और साहित्य की पांच पोथियां प्रकाशित हो चुकी हैं। कवि ने कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपने कई शोध पत्रों को प्रस्तुत किया है। आकाशवाणी केंद्र जोधपुर और दूरदर्शन पर उनकी कई रचनाओं का प्रसारण किया जा चुका है।

Source: Jodhpur

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