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दिलीप दवे
बाड़मेर. गांव के वे घर जो कभी हंसते-खिलखिलाते थे, वीरान हो गए। उनमें वीरानी ऐसी छाई कि तालों में जंग लग गई तो दीमक चौखट का चट कर गई, लेकिन अब संकट आया तो फिर से इन घर में बचपन गुजराने वालों का गांव की याद आई। कोरोना के बीच महानगरों व शहरों की भागदौड़ से दूर सोशल डिस्टेंस और सुकून की जिंदगी तलाशने फिर से परदेसी गांव पहुंच रहे हैं। वो गांव जो कभी उनको प्यारा था, लेकिन रोजी-रोटी कमाने गए तो गांव पीछे छूट गया था, अब वे लौटे हैं तो अपने परिवार के साथ। कोई सात साल बाद गांव लौटा तो कोई दस साल बाद। यह कहानी एक गांव की नहीं कई गांवों की है, जहां महानगरों व शहरों से अपने फिर अपनों के बीच पहुंच गए हैं।
गांवों में रोजगार की कमी के चलते शहरो ंकी ओर गए सैकड़ों परिवार वहीं के होकर रह गए। किराए के मकान या फिर छोटा-मोटा खुद का मकान पाकर वे खुश थे, लेकिन कोरोना के कहर के बीच जब लगा कि अब गांव में सुकून मिल सकता है तो फिर से लौट आए। जिले के शिव क्षेत्र में ऐसे ही कई परिवार आए हैं जो बरसों बाद गांव पहुंचे हैं। बीसूखुर्द निवासी संजय परिवार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। संजय परिवार सहित पाली में रहता है तो उसके भाई अहमदाबाद में। कुछ साल पहले पिता के निधन पर सभी एक साथ गांव में रहे, इसके बाद गांव छूट गया। सालों बाद सभी भाई फिर से गांव आए और अपने पुराने व पुश्तैनी घर की सुध ली। सालों बाद घर में खुशियां लौटी है। बच्चों की चहचहाट के बीच संजय व उनके भाई गांवों वालों से मिलकर खुश है तो हथाइयों में बचपन की यादें ताजा हो रही है। कुछ ऐसा ही बीसूखुर्द के हरीशकुमार दर्जी के साथ भी हुआ। वे दस साल पहले गांव छोड़ कर रामजी का गोल में चले गए। वहां दुकान अच्छी चली तो परिवार सहित बस गए। अभी कोरोना संक्रमण का दौर आया तो अपने तीन बच्चों व पत्नी के साथ गांव आ गए। गांव आए तो घर की सुध ली और पिछले एक डेढ़ माह में उन्होंने घर का निर्माण भी करवा लिया। कमोबेश यही स्थिति भिंयाड़ में कई घरों की है, जो सालों व महीनों बाद खुले हैं। इसके अलावा जिले में सैकड़ों परिवार अपने गांव, कस्बे या शहर की ओर लौटे हैं।
पथराई आंखों को मिला साथ- जिले में कई घर ऐसे हैं जिसमें बूढ़े मां-बाप अकेले रहते हैं, क्योंकि उनके बेटे-पोते कमाने के लिए परदेस चले गए। इन बुजुर्गों का गांव से मोह नहीं छूटा तो यहीं रहने लगे। साल में कभी कभार बेटे-पोते आते थे और दो-चार दिन रुक कर चले जाते थे। कोरोना संक्रमण के दौरान सभी गांव आए हैं और अभी बुढ़े मां-बाप के साथ वक्त गुजार रहे हैं। जो पथराई आंखें अपनों का इंतजार कर रही थी, वे अब खुश है क्योंकि लम्बे अर्से बाद उनके अपने एक-डेढ़ माह से उनके साथ जो हैं।
दस साल बाद आया- मैं मेरे गांव दस साल बाद आया हूं। बंद घर को खोलने के साथ ही मरम्मत करवाई। यहां आकर खुशी हुई है, लेकिन कमाने के लिए जाना भी मजबूरी था। पुरानी यादें ताजा हो रही है।- हरीशकुमार दर्जी, बीसू खुर्द
पूरा परिवार साथ- हमारा परिवार सात साल बाद गांव आया। गांव पहुंचा तो जो खुशी हुई उसको बयां नहीं कर सकता। क्या करें काम के चक्कर में गांव छूट गया। अब तीनों भाइयों का परिवार साथ रह रहे हैं। यह खुशी सालों बाद मिली है।- संजय पंवार, बीसूखुर्द
सालों बाद लौटे हैं- हमारे गांव में कई परिवार सालों बाद लौटे हैं। जिन घरों पर ताले थे, वहां अब रौनक नजर आती है। देखकर खुशी हो रही है।- कानसिंह राजपुरोहित, पूर्व सरपंच बीसू

Source: Barmer News

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