बाड़मेर. कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र गुड़ामालानी के प्रभारी डॉ. प्रदीप पगारिया ने जिले के बकरी पालकों को लॉकडाउन के दौरान सामान्य सावधानियां और सुरक्षात्मक उपाय बताए हैं। डॉ. प्रदीप पगारिया ने बताया कि जिले में २८९६६२० बकरियां हैं, जो कि पशुपालकों के लिए आय का एकमात्र साधन है।
आंत्राविशक्तता-
बकरियों में यह रोग क्लास्टीडियम परप्रिफजेन्स जीवाणु से आंतों में उत्पन्न होता है। यह जीवाणु आंत में रहता है। इस बीमारी से पशुओं को अचानक से पेट में तीव्र दर्द होता है, जिससे वे जमीन पर गिरकर घिसटने या पड़े रहते हैं। इससें पशु की पांच से चौबीस घंटे में मृत्यु हो जाती है।
उपचार-
इसके उपचार में बकरी को दो से पांच ग्राम खाने का सोडा तथा टेटांसाइक्लिीन पाउडर का घोल दिन में दो से तीन बार पिलाएं। इसके बचाव के लिए इन्टेरोक्सीमिया का वार्षिक टीकाकरण मुख्य उपाय है। साथ ही पशुओं को दिए जाने वाले दाने/चारे में अचानक कोई परिवर्तन न करें।
मुंहपका व खुरपका रोग-
यह संक्रामक विषाणु जनित रोग है जो फटे खुर वाले पशुओं में होता है। यह एक बकरी से दूसरी बकरी में हवा से, प्रदूषित पानी पीने अथवा रोगी बकरी के साथ चारा खाने से फैलता है। इसमें मुंह के भीतरी सतह, जीभ, पैर, थन आदि पर छाले पड़ जाते हैं।
उपचार
रोगी पशु को अन्य से अलग रख कर नरम एवं सुपाच्य भोजन देना चाहिए। जीवाणु नाशक एवं दर्द निवारक दवा की सुई लगवाने के साथ घाव छाालों की एन्टीसेप्टिक दवाओं से धुलाई करनी चाहिए। इस रोग से बचाव के लिए प्रतिवर्ष छह माह के अन्तराल पर मार्च-अप्रेल तथा सितम्बर-अक्टूबर में पशुओं के टीके लगाएं।
बकरी प्लेग-
यह अत्यंत संक्रामक विषाणू जनित रोग है, जिससे एक ही बाडे़ में रहने वाली नब्बे फीसदी बकरियां संक्रमित हो जाती है। अस्सी फीसदी की इससे मौत हो सकती है। इस बीमारी से ग्रसित बीमारियों का तापमान १०५-१०६ डिग्री फैरेनहाइट हो जाता है। मुंह में छाले, काले रंग के दस्त, आंखों व नाक से पानी आना, सांस लेने में परेशानी आना इसके लक्षण है। मसुड़े तथा जीभ लाल हो जाती है।
उपचार-
पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखें। चार से बारह माह के मेमनों में यह रोग तीव्र रूप से होता है। इस रोग से बचाव के लिए सभी बकरी तथा मेमनों को पी.पी. आर. का टीका लगवाएं।
अंत:परजीवी-
बकरियों के शरीर में गोलकृमि, यकृत कृमि एवं फीता कृमि वर्ग के कई अंत:परजीवी पाए जाते हैं। ये परजीवी गन्दे पानी व दूषित चारे के माध्यम से पशु के शरीर में प्रवेश कर आंत की ष्लेज्मा झिल्ली से चिपक कर पशु को कमजोर कर देते हैं। रोग ग्रसित बकरी को बदबूदार दस्त आती है और खून की कमी हो जाती है।
उपचार-
इसके बचाव के लिए कृमिनाशक औषधियां वर्ष में कम से कम दो बार बरसात के पहले और बरसात के बाद अवश्य देनी चाहिए। इसके लिए एलबेन्डाजोल ७.५ मि.ली.ग्राम/ किलो शारीरिक भार के अनुसार देनी चाहिए।
Source: Barmer News