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रतन दवे
नाकोड़ा के कोविड केयर सेंटर पर मरीजों का मंत्री के सामने आकर शिकायतों का अंबार लगाना केयर सेंटर्स की अव्यवस्थाओं पर उठते सवालों से प्रश्न उठा गया। रोटी-सब्जी-सेनेटाइजर और सफाई को लेकर कोविड सेंटर में दाखिल लोगों ने दो टू कहा कि उनका ख्याल नहीं रखा जा रहा है। कोरोना की महामारी का भय और परिजनों को छोड़कर प्रशासनिक व सरकारी व्यवस्थाओं के जिम्मे छोड़े गए लोगों की यह दुर्गति शर्मसार करने वाली है। शर्तिया यह बात सत्य है कि समय पर रोटी,सब्जी और सुविधाएं दी जाए तो कोई शिकायत नहीं करेगा। शिकायतें अव्यवस्थाओं से उपजती है और लगातार ध्यान नहीं दिया जाए तो रोष पनपता है। रोष उजागर करने वालों ने अधिकारियों को भी पहले कहा होगा लेकिन यह तय है कि इधर से सुनकर उधर निकालने की आदत से बाज नहीं आए। इसका नतीजा रहा कि सोमवार को मंत्री के सामने कोविड सेंटर में दाखिल लोग इस तरह बिफरे कि मंत्री को भी ताव आ गया। फिर मंत्री आपे से बाहर थे और अधिकारियों को जमकर लताड़ पिला दी। सवाल यह है कि कोविड केयर सेेटर पर सुविधाओं को लेकर सरकार पर्याप्त बजट दे रही है तो फिर इंतजाम क्यों नहीं हो रहे है? कहीं मरीजों के हिस्से की रोटी बांटने का खेल तो शुरू नहीं हो गया है? शहर और गांवों को सेनेटराइज करने का दावा करने वाले प्रशासनिक अमले के सामने कोविड सेंटर सेनेटराइज नहीं करने का सवाल उठ रहा है तो जवाबदेही तय हों कि लापरवाही किस स्तर पर की जा रही है। कोविड केयर सेंटर के प्रभारी अधिकारी यहां दाखिल तीस-चालीस लोगों के असंतोष के पात्र बनने लगे है, ऐसा क्यों? पहले बाड़मेर के कोविड केयर सेंटर को लेकर एक जागरूक कोरोना संदिग्ध ने विडियो वायरल कर किया तो स्थिति सामने आई और बालोतरा में। प्रशासन इसको हल्के से क्यों ले रहा है? कोरोना को लेकर लोगों में पहले से ही भय है और उस पर कोविड केयर सेंटर की अव्यवस्थाओं को लेकर डर बैठ गया तो फिर मरीज और परिजनों का हाल क्या होगा? जिस विश्वास और भरोसे की इस बीमारी में सर्वाधिक जरूरत है वह उठने लगा तो फिर सब किए धरे पर पानी फिरना तय है। प्रशासन इन कोविड केयर सेंटर की पुन: समीक्षा करे, व्यवस्थाओं का आंकलन करे। कोविड सेंटर से बाहर निकलते हुए व्यक्ति आशीष देता हुआ निकले तो बढिय़ा है,वरना बदइंतजामियां बुरी है। कोविड केयर सेंटर ही नहीं अब कोरोना विस्फोट के दौर में नए सिरे से तमाम इंतजामों की समीक्षा होनी जरूरी हो गई है। बाड़मेर जिले में सेम्पल लेने की गति बढ़ाना बहुत जरूरी हो गया है। ग्राम पंचायत, भामाशाह और संस्थाओं ने मार्च-अप्रेल के शुरूआती दिनों में जिस जोश के साथ सेनेटाइजर कर बीमारी व बीमारी के भय को भगाने में अहम भूमिका निभाई, वैसी ही दुबारा जरूरत आ गई है। सोशल डिस्टेंस का मूलमंत्र स्वभाव में फिर से लाने के लिए प्रशासन व पुलिस को अब फिर से पांवों पर खड़ा होने की दरकार है। जरूरी है कि एक दूसरे का विश्वास जीते।

Source: Barmer News

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