बाड़मेर .
हौंसला हों तो जीवन रुकता नहीं। ठहरती नहीं जिंदगी यदि इरादे मजबूत हों और कठिनाइयां परास्त होती है यदि आगे बढऩे का जज्बा जिंदा रखें। हापों की ढाणी की लीला से यह सीख ली जा सकती है। बाड़मेर-जैसलमेर के इलाके में जहां बेटियों को आगे नहीं पढ़ाने को लेकर कई बहाने तलाशे जाते है वहां एक बेटी के दोनों हाथ कट गए तो उसने पांवों से लिखना सीखा और आज दसवीं उत्तीर्ण कर उसने पढ़ाई के सहारे अपनी राह चुन ली है।
हापों की ढाणी निवासी भूरसिंह की पुत्री लीलाकंवर को 23 सितंबर 2003 को करंट आ गया था। उसे उपचार के लिए बाड़मेर के बाद अहमदाबाद ले गए। वहां मासूम के दोनों हाथ काटने पड़े। भूरसिंह पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा, लीला की जिंदगी को लेकर उनको कुछ नहीं सूझ रहा था। लीला ने अभी स्लेट थामी ही थी और उसके हाथ कट गए तो पिता ने सोचा अब जिंदगी कैसे कटेगी? लीला कुछ दिन बाद बच्चों के साथ स्कूल जाने लगी तो उसकी लगन देखकर शिक्षकों ने उसे प्रोत्साहित किया कि पांवों से लिखना सीखे। लीला की दिलचस्पी बढ़ी और वह पंावों से लिखने लगी और उसके पांव कॉपी-किताब पर ऐसे जमे कि वह पढऩे का सिलसिला शुरू कर गई।
कृत्रिम हाथ लगे लेकिन नहीं जमे
वर्ष 2016 में लीला के कृत्रिम हाथ स्कूली शिक्षा में लगे लेकिन कृत्रिम हाथ काम नहीं आए। उनको खूंटी पर टांग दिया और लीला पंावों के बूते ही पढऩे लगी।
59.37 प्रतिशत अंक लाए
माध्यमिक शिक्षा दसवीं बोर्ड के परिणाम में लीला ने पैरों से परीक्षा देकर 59.37 फीसदी अंक हासिल कर हौसला दिखाया है। लीला हापों की ढाणी स्थित सरकारी स्कूल में अध्यनरत थी।
पत्रिका बनी थी मददगार
राजस्थान पत्रिका को 23 अगस्त 2016 को खबर मिली कि लीला के कृत्रिम हाथ खूंटी पर टंगे है। पड़ताल में पता चला कि मासूम को डिस्कॉम की ओर से कोई मुआवजा नहीं मिला है और न ही अन्य कोई सरकार मदद। उसके बाद पत्रिका के आह्वान पर 1 लाख 11 हजार की मदद सामाजिक संगठनों से मिली। उसके बाद राजस्थान पत्रिका ने लगातार समाचार प्रकाशित कर डिस्कॉम से बालिका को 4 लाख 50 हजार रुपए का मुआवजा राशि दिलाई। लीला को इससे संबल मिला है।
सरकार करे मदद
लीला के लिए सरकार को अब मदद को आगे आना चाहिए। उसके दोनों हाथ नहीं है फिर भी वह दसवीं उत्तीर्ण हो चुकी है। पढ़ाई व अन्य खर्च के लिए ऐसी बालिकाओं को विशेष पैकेज देना चाहिए।- शेरसिंह भुरटिया, शिक्षक नेता
Source: Barmer News