नंदकिशोर सारस्वत
जोधपुर. हजरत इमाम हसन-हुसैन सहित करबला के शहीदोंं की याद में मनाए जाने वाला मातमी पर्व मोहर्रम जोधपुर में साम्प्रदायिक एकता की मिसाल रहा है। मोहर्रम पर ब्राह्मण समाज के लोग भी अपने खर्चे से ताजिया बनवाने में सहयोग करते और उसे उसी भावना व श्रद्धा से मुस्लिम भाइयों के साथ मिलकर मोहर्रम की सवारी में शामिल होते थे। हिन्दू परिवार के युवा मोहर्रम के जुलूस में हिस्सा लेते थे । सभी वर्ग के लोग अपनी आस्था के मुताबिक मोहर्रम पर सेहरा व प्रसाद चढ़ाते थे ।
जोधपुर में मोहर्रम का इतिहास
मोहर्रम की परम्परा महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय (1873-1895 ) के समय मोहर्रम के दौरान छबील वितरण का उल्लेख मिलता है। मोहल्ला लायकान में स्वर्ण वर्क वाले ताजिए के निर्माण में जयपुर महाराजा मानसिंह की रानी ने सहयोग किया था।
मिलते थे एक दूसरे से गले
नायकों के मोहल्ले का मोहर्रम नवचौकिया के ब्राह्मणों के सहयोग से बनाया जाता था । ताजियों के मिलाप का नजारा देखने लायक होता था । हिन्दू वर्ग के लोग और अखाड़ों के सदस्य एक दूसरे से गले मिलते थे। आज भी जोधपुर के बुजुर्ग उन सुनहरी यादों और बेमिसाल क्षणों को याद करते है। किसी विवाद के बाद मोहर्रम एकता कमेटी सन 1968 में भंग हो गई थी
-हाजी हमीम बक्ष-अध्यक्ष मोहर्रम एकता कमेटी जोधपुर
कौमी एकता की मिसाल रहा है जोधपुर
जोधपुर आज से ही नहीं बल्कि बरसों से कौमी एकता की मिसाल बना है । जोधपुर शहर के विभिन्न स्थलों पर विराजित ताजिए खांडा फ लसा इकमिनार मस्जिद के पास आकर मिलते । वही सभी ताजिए का मिलाप भी होता था । भीतरी शहर से मोहर्रम गुजरते तब हिन्दू समुदाय के लोग भी पुष्पवर्षा कर स्वागत करते थे । एकमिनार से घंटाघर की तरफ बढते मोहर्रम में भाई चारे की मिसाल नजर आती थी । मिलाप मोहर्रम का मतलब ही हिन्दू मुस्लिम की एकता थी ।
-मतीन अंसारी, सचिव, ईदेन अभिनंदन समिति जोधपुर
Source: Jodhpur