नंदकिशोर सारस्वत
जोधपुर. मारवाड़ के विभिन्न जलाशयों पर देवझूलनी एकादशी को पर्यावरण और जल संरक्षण से जुड़ा अनूठा लोकपर्व मनाया जाता है जिसमें विवाहित बहनें अपने भाई को जलाशय में बारिश के पवित्र जल को हथेली में भर कर उसे पिलाती है और जलदेवता की साक्षी में उसकी दीर्घायु, स्वास्थ्य व सुख समृद्धि की कामना करती है। इस अनूठे लोकपर्व को समंद झकोळना अथवा तेरुडी भी कहा जाता है। इस अनूठे आयोजन वे ही महिलाएं शामिल होती है जिन्होंने एक माह तक पवित्र जलाशय की सफाई अथवा उसकी पाळ याने सुरक्षा दीवार को मजबूत बनाने के लिए मिट्टी की खुदाई कर श्रमदान किया हो। खास तौर से पुरुषोत्तम वर्ष के दौरान अपने गांव अथवा घर के नजदीकी पवित्र जलाशय अथवा तालाब परिसर को स्वच्छ बनाए रखने के लिए अनावश्यक कटीली झाड़ियां कंकर पत्थर हटाने श्रमदान किया हो। श्रमदान करनी वाली महिला के पीहर पक्ष से उसके भाई व भाभी देवझूलनी एकादशी को पहुंचकर महिला के पवित्र संकल्प का पारणा करते है। पवित्र जलाशय के तट पर बहनें अपने भाई को हथेली से जल पिलाकर इस संकल्प का पारणा करती है। महिला के पीहर पक्ष से मगध, चूरमा, अथवा मोतीचूर के लड्डू सौंपे जाते है।
जल देवता की साक्षी में लेती है संकल्प
सैनिक क्षत्रिय पूंजला नाडी के संयोजक राकेश सांखला ने बताया की गाजे बाजों के बीच जलाशय पर आभूषणों से लदकद महिला के पीहर पक्ष से मिष्ठान से भरे मिट्टी का पात्र सौंप कर रिश्तों में प्रगाढ़ता मिठास और स्नेह को बनाए रखने और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया जाता है। पात्र में रखे मिष्ठान को महिला अपने परिचितों और रिश्तेदारों से साझा कर अपनी श्रमदान के बारे में बताती है ताकि और भी लोग प्रेरित हो सके।
बड़ली तालाब पर मेले सा माहौल
जोधपुर जिले के डोली, झालामंड, पूंजला नाडी, रामतलाई नाडी आदि जगहों पर मेले सा माहौल होता है जहां महिलाएं रंग बिरंगे परिधानों में मंगल गीत गाते पहुंचती है। इस बार वैश्विक महामारी कोरोना के बावजूद सोशल डिस्टेंसिंग की पालना के साथ परम्परा का निर्वहन किया गया। बड़ली तालाब पर मेले सा माहौल रहा।
Source: Jodhpur