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ओम टेलर/जोधपुर. पाकिस्तान में खेतों में रखवाली, मजदूरी करके परिवार का पेट पालते थे। आर्थिक रूप से कमजोर थे तो वहां लूटेरों ने भी निशाना बनाया। हद तो तब हो गई जब हमारी बहन-बेटियों को बंदूक दिखाकर उठा ले जाते थे। कुछ ने विरोध किया तो गोली मार दी। पुलिस व स्थानीय प्रशासन से भी कोई मदद नहीं मिली। इसलिए इज्जत बचाने की खातिर अपना सबकुछ औने-पौने दामों में बेचकर वापस भारत आ गए। यह दर्द है जोधपुर में रह रहे पाक विस्थापितों का। यहां भी अब तक सुनवाई नहीं हुई, लेकिन फिर कहते हैं चाहे भारत सरकार हमें गोली भी क्यों नहीं मार दे, वापस नहीं जाएंगे। विस्थापित बस्ती की पीड़ा जानने जब पत्रिका टीम पहुंची तो कुछ एेसी ही कहानियां सामने आई।

मेहनत कर पेट पालेंगे, वापस नहीं जाएंगे
न्यू कृष्णा कैम्प चौखा क्षेत्र में कच्ची बस्ती में रहने वाले ६० वर्षीय लाखाराम भील बताते हैं कि पाकिस्तान में सिंध के सांगण जिले के खेते जाट की ढाणी में रहते थे। कमजोर तबके के होने के कारण जुल्म बढऩे लगे। बंदूक दिखाकर दिनदहाड़े पशु, बाइक लूटकर ले जाते थे और हम कुछ नहीं कर पाते थे। परेशान होकर अपना सबकुछ छोडक़र वर्ष २०१४ में धार्मिक यात्रा का एक माह का वीजा लेकर परिवार सहित भारत आए तथा जोधपुर में ही बस गए। यहां मजदूरी कर अपना गुजारा चलाते हैं। लेकिन किसी भी सूरत में वापस नहीं जाना चाहते।

धमकियां मिलती, काम तक नहीं देते
लूणाराम भील बताते हैं कि पाकिस्तान के सिंध के सांगण जिले में परिवार सहित रहते थे। हिन्दू परिवारों पर जुल्म बढऩे लगा। वहां माहौल ऐसा नहीं है कि परिवार के साथ शांति से रह सके। हिन्दू परिवारों के साथ लूट, मारपीट की घटनाएं होती हैं। लेकिन पुलिस-प्रशासन कुछ सहायता नहीं करता। धार्मिक वीजा लेकर २०१५ में भारत आ गए। अब किसी भी स्थिति में वापस नहीं जाएंगे।

यहां भी न पीने के लिए पर्याप्त पानी है न बिजली
४५ वर्षीय राधा देवी कहती है पाकिस्तान में परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इसलिए शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए भारत आए। लेकिन यहां बस्ती में भी परेशानी है। न तो पर्याप्त पानी मिल रहा है और न बिजली। नागरिकता मिले तो खुद का छोटा सा आशियाना बनाएं। यहां कच्ची बस्ती में रात में मच्छर काटते हैं। कई बार सांप-बिच्छू तक आ जाते हैं।

हिन्दूओं को नहीं देते विजिटर वीजा
प्रेमचंद भील ने बताया कि उन्होंने पाकिस्तान में १२वीं तक की पढ़ाई की है। धार्मिक उत्पीडऩ एवं धर्म परिवर्तन के दबाव से परेशान होकर भारत आए। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को धर्म परिवर्तन करने या पाकिस्तान छोडऩे का दबाव बनाया जाता है। इसलिए वहां हिन्दूओं की संख्या कम होती जा रही है। हिन्दूओं को भारत आने के लिए विजिटर वीजा नहीं मिलता था, इसलिए सभी धार्मिक वीजा लेकर भारत आए। इसमें आठ से १५ हजार तक का खर्च होता था। यहां आने पर भी कई एजेंट सीआईडी का डर बताकर अपना उल्लू सीधा कर लेते थे।

Source: Jodhpur

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