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जयकुमार भाटी/जोधपुर. ‘जब भी घुंघरूओं की आवाज मेरे कानों में पड़ती है तो मन दूसरी दुनिया में चला जाता है।’ यह कहना है गुरू मंजूषा सक्सेना का जिन्होंने अपने जीवन में लम्बे संघर्षो के बाद सफलता देखी। आज वे हजारों बच्चियों की गुरू मां बन गई है। अपने जीवन में आयी कठिनाईयों का मुकाबला कर ऐसा मुकाम बनाया कि राजस्थान में भरतनाट्यम को पहचान दिलाने के साथ जोधपुर को भरतनाट्यम का हब बना दिया।

नृत्य के लिए सहना पड़ा विरोध
मंजूषा सक्सेना का जन्म 21 जनवरी 1970 को मध्य प्रदेश के कटनी जिले में हुआ। मध्यम परिवार में जन्मी मंजूषा के घर में नृत्य का माहौल नहीं था। पिता नृत्य के सख्त खिलाफ थे। फिर भी फिल्मी नृत्य को देखकर नृत्य करने लगी। लेकिन परिवार का सहयोग ना मिलने से सीख नही पायी। एक बार किसी समारोह में एयरफोर्स के अफसर ने उनका नृत्य देखा और प्रभावित होकर उसने विवाह कर लिया। शादी के बाद वे दिल्ली आ गई जहां उनके दो पुत्रों का जन्म हो गया। परिवार व बच्चों में उलझे रहने के बाद भी उन्होंने नृत्य करना नहीं छोड़ा तो वे घरेलू हिंसा का शिकार होने लगी। परिवार सभांलने के लिए सब सहना उनकी मजबूरी बन गयी। लेकिन जैसे ही घुंघरू, तबला व श्रृदंग की आवाज उनके कानों में सुनाई देती तो वे अपने सारे दुख भूल जाती। अपना सपना पूरा करने के लिए उन्होंने मुसीबतों से मुकाबला करते हुए दिल्ली में गुरू सरोजा वैघनाथन के मार्गदर्शन में भरतनाट्यम सीखना प्रारम्भ किया और नौ साल का कोर्स पांच साल में पूरा किया। यहां से उन्हें जीवन जीने का मकसद मिल गया।

राजस्थान में भरतनाट्यम को दिलाई पहचान
उन्होंने बताया कि पति का स्थानान्तरण जोधपुर होने पर यहां राजस्थान में भरतनाट्यम को पहचान दिलाना मेरे लिए चुनौती जैसा था। राजस्थान में लोग भरतनाट्यम को नहीं जानते थे और जो जानते थे वे इस कला को सम्मान नहीं देते थे। यहां के लोग क्लासिकल नृत्य में केवल कत्थक या फिर राजस्थानी लोक नृत्य जैसे- घूमर, कालबेलिया व तेरहताली जैसे नृत्य को जानते थे। उन्होंने भरतनाट्यम को पहचान दिलाने की ठानी और इस दिशा में लग गई। भरतनाट्यम की भाषा तमिल होने से इसके बोल व नृत्य कला कठिन थी। लेकिन उन्होंने इसे सरल बनाया जिससे छात्राओं को समझ आने लगा। फिर उन्होंने चंडीगढ सरकार से मान्यता प्राप्त प्राचीन कला केन्द्र से मान्यता लेकर अपना नृत्य स्कूल ‘शिवम् नाट्यालय’ की शुरूआत की।

जोधपुर को बनाया हब
मंजूषा ने अपने स्कूल से अब तक छह हजार छात्राओं को डिप्लोमा इन भरतनाट्यम करवाया हैं। वहीं 15 बच्चियों को आरंगेत्रम करवाया हैं। शहर में एम्स सहित छह स्थानों पर भरतनाट्यम की कक्षाएं संचालित होने के साथ उदयपुर, कोटा व जयपुर से छात्राएं सीखने आ रही हैं। अभी कोरोना काल में छात्राए ऑनलाइन कक्षा से नृत्य सीख रही है। आज जोधपुर भरतनाट्यम का ‘हब’ बन गया है। आईआईटी जोधपुर में गेस्ट फैकल्टी मंजूषा कहती है कि ‘इंसान को कभी शोर्टकट नहीं अपनाना चाहिए, पूरे रास्ते पर चलना चाहिए। इन्सान को हमेशा शिष्य बनकर रहना चाहिए और अपने अन्दर की प्रतिभा को ढूंढकर उसे आगे बढ़ाना चाहिए, ऐसा करना ही सही मायने में अपने गुरू की पूजा करना हैं। ’

Source: Jodhpur

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