नंदकिशोर सारस्वत
जोधपुर .जोधपुर के मंडोर क्षेत्र में एक विशाल खुले रमणीक से स्थल पर एक नया बडा-सा भवन का नाम है ‘अनुबंध वृद्धजन कुटीरÓ। सन 2002 में निर्मित व स्थापित वृद्धाश्रम दरअसल आश्रम न होकर वृद्धजन कुटीर है। हस्तशिल्प व्यवसायी नरेन्द्र अडवानी व उनकी पत्नी अनुराधा अडवानी की ओर से संचालित आश्रम उनके व्यक्तिगत संसाधनों से ही संपादित है। आश्रम में अडवानी दंपत्ति की ओर से 75 बेसहारा, घर से निष्कासित, शारीरिक रूप से अशक्त वृद्धजनों की न केवल नियमित सेवा आहार, सेवा, चिकित्सा सेवा होती है बल्कि मृत्यु हो जाने पर उनके अस्थि विसर्जन तक का उत्तदायित्व का निर्वहन तक अडवानी दंपत्ति खुद करते है।
आश्रम प्रबंधक अनुराधा अडवानी ने पत्रिका ने बताया कि अपने सास ससुर को आठ साल तक बिस्तर पर उनकी तकलीफें देखी। आठ साल बाद वो जब चले गए तब मुझे लगा है उन दोनों जैसे और भी माता पिता होंगे जिनकी शायद देखभाल करने वाला नहीं हो। अपने ही घर में बुजुर्गों की असहाय मजबूरियों और पीड़ा भरे अहसास ने हमारे मन में अनुबंध का बीजारोपण किया। चुपचाप बिना किसी दिखावे आडम्बर के हम दोनों ने मिलकर 2002 में अनुबंध की शुरुआत की। परिवार पहले भी था अब भी है लेकिन अब 55 से 95 उम्र के 75 दादा दादी का परिवार साथ रहता है। प्रबंधन का जिम्मा मेरा था। अनुबंध की जरूरते, नियमित खरीदारी, शॉपिंग, रिपेयरिंग, निर्माण, आश्रम के दादा-दादी बीमार पड़ जाए तो उन्हें अस्पताल ले जाना और दवाइयां देना। यदि किसी की मृत्यु हो जाए तो उनका अंतिम संस्कार और अस्थियां विसर्जन करना। अपने प्रोफेशन के साथ इतना सब कुछ संभालना कोई आसान काम नहीं था। अनुबंध की हर समस्या को बहुत शिद्दत और दूरदर्शिता के साथ निवारण में अडवानी सर ने शिद्दत के साथ मेरे हर कार्य में पूरा पूरा योगदान दिया है। सिर्फ अनुबंध ही नहीं मेरे और भी बहुत सारे सरोकार रहे है। फिल्म, टीवी धारावाहिक, रेडियो, इएमआरसी, आर्ट एण्ड कल्चर, थिएटर, गायन, इवेंट मैनजमेंट सहित बहुत सारे फील्ड्स में भी अडवानी साहब का भरपूर सहयोग मिला और उन्हीं के सहयोग से कार्य कर पाई।
Source: Jodhpur