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नंदकिशोर सारस्वत

जोधपुर. अनार्य संस्कृति के उज्ज्वल प्रतीक राजा रावण और उसकी आराध्य देवी खरानना को जोधपुर में पूजा भी जाता है। विद्याशाला किला रोड पर रावण, मंदोदरी तथा रावण की आराध्य देवी खरानना माता का मंदिर है जिसमें नियमित पूजन होता है। श्रीमाली ब्राह्मणों में दवे गोधा खांप के लोग न केवल रावण की पूरी श्रद्धापूर्वक पूजा अर्चना करते हैं बल्कि विजयदशमी पर्व तक नहीं मनाते है। विजयदशमी को रावण दहन के बाद स्नान कर कुछ परिवार नवीन यज्ञोपवीत भी धारण करते हैं । हालांकि खांप के कुछ ब्राह्मण इस परम्परा को दशकों पहले की बताते है तो कुछ इसे पूर्वजों की परम्परा बताते है। दवे गोधा खांप के दिनेश दवे व अजय दवे ने बताया की दशानन दहन पर शोक मनाने और स्नान व यज्ञोपवीत बदलने की परम्परा हमारे दादा परदादा के समय से ही चली आ रही है।

डेढ़ टन वजनी है प्रतिमा
जोधपुर में निर्मित रावण के मंदिर में करीब साढ़े छह फीट लंबी और डेढ़ टन वजनी रावण की प्रतिमा छीतर पत्थर को तराश कर बनाई गई है । वर्ष 2007 में किला रोड स्थित महादेव अमरनाथ मंदिर परिसर में स्थित मंदिर में रावण को शिवलिंग पर जलाभिषेक करते दर्शाया गया । रावण के मंदिर के ठीक सामने मंदोदरी की मूर्ति है। जिसमें उसे भी शिवलिंग पर पुष्पार्पित करते दर्शाया है ।

जोधपुर में रावण से जुड़ी कई धारणाएं
मंदोदरी जोधपुर के मंडोर की राजकुमारी बताकर कई समूह मंडोर क्षेत्र को रावण की ससुराल मानते हैं । दावा यह भी करते है की मंडोर क्षेत्र में प्राचीन एक चंवरी जहां रावण ने फेरे लिए वह आज भी मौजूद है। हजारों साल प्राचीन चंवरी में अष्टमातृका व गणेश की मूर्ति है ।

महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश के विभागाध्यक्ष डॉ. एमएस तंवर के अनुसार छोटे ठिकानों के किसी राव की ओर से निर्मित राव की चंवरी को राजस्थानी में राव नी चंवरी कहा जाता है और मंडोर में राव नीं चंवरी को ही रावण मंदोदरी विवाह की चंवरी यानी रावण की चंवरी कह दिया जाता है । वर्तमान में यह स्थल लंबे अर्से से पूरी तरह वीरान पड़ा है। क्षेत्र के निर्मल गहलोत कहते है चंवरी पर आज तक कभी कोई आयोजन किसी की ओर से भी नहीं हुआ है। पर्यटन विभाग की ओर से किंवदंतियों के आधार पर पर्यटकों के लिए लगा सूचना पट्ट भी अब वहां से हटा दिया गया है।

Source: Jodhpur

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