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बाड़मेर. बाजरा की बुवाई में बाड़मेर जिला आगे है लेकिन उत्पादन में कहीं पीछे है। जहां प्रदेश के अन्य जिलों में आठ से दस क्विंटल प्रति हैक्टेयर बाजरा पैदा होता है तो बाड़मेर में पांच-छह क्विंटल ही। एेसे में बम्पर बुवाई के बाद भी बाड़मेर कमाई में पीछे है। जरूरत है उन्नत किस्म के बीज के उपयोग के साथ खेतों में खाद व उचित सार संभाल की जिसको लेकर जागरूकता आने पर ही बाड़मेर में बाजरा की उत्पादन क्षमता बढऩे की उम्मीद है। सीमावर्ती जिले बाड़मेर में खरीफ की बुवाई में बाजरा सबसे अधिक बोया जाता है।

इस साल 14 लाख 57 हजार हैक्टेयर में खरीफ की फसलें बोई गई जिसमें से बाजरा की बुवाई 8 लाख 50 हैक्टेयर में हुई। बम्पर बुवाई के बाद अभी बाजरा की फसल ली जा रही है लेकिन प्रति हैक्टेयर उत्पादन कम होने से किसानों को मेहनत के पूरे दाम नहीं मिल पा रहे हैं।

एक तरफ जहां महाराष्ट्र, आंधप्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों में प्रति हैक्टेयर उत्पादन कम होने से कम बुवाई के बावजूद वहां के किसानों को अधिक मुनाफा हो रहा है तो दूसरी ओर बाड़मेर में अधिक भू भाग में बुवाई के बावजूद प्रति हैक्टेयर कम उत्पादन होने से ज्यादा कमाई नहीं हो रही।

उन्नत बीज व खाद पर नहीं ध्यान- जिले में बड़े पैमाने पर बाजरा की बुवाई होने के बाद भी उत्पादन कम होने का मुख्य कारण उन्नत किस्म के बीज का उपयोग नहीं करना है। वहीं यहां किसान खेत में खाद का उपयोग भी न के बराबर करते हैं। अकाल पडऩे पर खेत की सार-संभाल नहीं होने पर भी बाजरा की उत्पादन क्षमता प्रभावित हो रही है।

अरबों का हो रहा घाटा- वर्तमान में बाड़मेर में करीब तीन-चार अरब का बाजरा उत्पादित हो रहा है। यदि प्रति हैक्टेयर उत्पादन क्षमता बढ़ जाए तो करीब साढ़े छह-सात अरब का बाजरा जिले में पैदा हो सकता है। करीब ढाई-तीन अरब का प्रतिसाल किसानों को एक तरह से घाटा हो रहा है।

उत्पादन कम, बुवाई ज्यादा- जिले में बाजरा का उत्पादन कम है बुवाई क्षेत्रफल ज्यादा है। किसान उन्नत बीज के साथ समय-समय पर खेतों में खाद डाल कर प्रति हैक्टेयर उत्पादन में बढ़ोतरी कर सकते हैं। इससे किसानों की आमदनी लगभग डेढ़-दो गुना हो जाएगी।- डॉ. प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक केवीके गुड़ामालानी

Source: Barmer News

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