जोधपुर. अनुज्ञा पत्र स्वामित्व प्रमाण पत्र प्राप्त कर वन्यजीवों की ट्रॉफियों को होटलों-घरों में सजावट के तौर पर रखने वालों की जांच पिछले दो साल से बंद है। नियमानुसार हर साल अनिवार्य रूप से वन्यजीव ट्राफियों की जांच करना अनिवार्य होने के बावजूद इसकी जांच प्रक्रिया बंद है। पर्यावरणप्रेमियों की ओर से जिले में लगातार घटते वन्यजीवों के पीछे वन्यजीव ट्राफियों के व्यापार की आशंका के बावजूद विभाग इस दिशा में कोई नहीं कार्रवाई नहीं की है। जोधपुर में अनुज्ञापत्र या स्वामित्व वाली वन्यजीव ट्राफियों की तादाद कम है। यह ट्राफियां उन्हें बख्शीश अथवा पुरखों की ओर संग्रह में मिली है।
नष्ट हो जाने पर सूचना देना अनिवार्य
यदि किसी वन्यजीव ट्राफियां स्वामी के पास यदि एक समय सीमा के बाद ट्राफी क्षय हो जाती है अथवा जल कर नष्ट हो जाती है तो इस अपडेट की सूचना विभाग को देना अनिवार्य होता है। इसी सूचना से पता चल सकता है कि किसी प्रकृति विशेष की जिले में कितनी वन्यजीव ट्राफियां है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में वन्यजीव ट्राफियों की कीमत उनकी प्रकृति के अनुसार लाखों-करोड़ों में है। एेसे में स्वामित्व प्रमाण पत्र वन्यजीव ट्राफी बिना विभागीय अनुमति से किसी अन्य को हस्तांतरण करना भी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत वन्यजीव अपराध की श्रेणी माना जाता है।
अनुज्ञा पत्र देने की प्रक्रिया लंबे अर्से से बंद
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम १९७२ लागू होने से पहले जिन लोगों को किसी ने उत्तराधिकार अथवा हस्तांतरण अथवा गिफ्ट के तौर मिली थी और उन्होंने उस समय स्वामित्व का प्रमाण पत्र लिया है केवल वही वन्यजीव ट्राफी रख सकता है। कई साधु संतों के पास भी धार्मिक कार्यों के लिए वन्यजीवों की खालों का प्रयोग किया जाता है।
नए अनुज्ञापत्र देने की प्रक्रिया बंद
विभाग ने पिछले लंबे अर्से से वन्यजीव ट्राफी रखने के नए अनुज्ञा पत्र देने की प्रक्रिया वन विभाग ने बंद कर दी है। विभाग की ओर से जल्द ही जांच की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
केके व्यास, सहायक वन संरक्षक वन्यजीव जोधपुर
Source: Jodhpur