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बुजुर्गों की बातें अगर सीधे-सीधे भेजे में घुसने लग जाए तो फिर कहना ही क्या! बचपन से एक सीख अलग-अलग तरीके से दी गई। लेकिन उसकी गहराई समझने में बहुत समय लग गया। दादीजी कहा करती थी ‘शुद्ध बोली राखो, जुबान माथे सरस्वती होवे’। माँ ने भी कहा कि ‘मनसा जिसी दसा’- जैसा सोचोगे, वैसे बन जाओगे। लेकिन मन और बुद्धि तो चंचल है! फिसलन भरे रास्ते पर चलते-चलते नेगेटिविटी की तरफ लुढ़क ही जाती। बड़ेरे भी कह गए कि अपने मूड और जुबान को पॉजिटिविटी में रखना चाहिए। ‘रोवतो-रोवतो जावे, मरिया री खबर लावे।’ यानी, अगर नकारात्मक सोच के साथ शुरुआत करोगे तो परिणाम भी वैसा ही मिलेगा। लेकिन डिग्रियों के बोझ तले दबी बुद्धि को ये सीधी सी बात ऐसे थोड़े ही समझ आती! इस कान से सुना, उधर से निकाल दिया।

चीजों को स्वीकारने की हमारी शर्त भी निराली है। योग जैसा शब्द जब तक ऋषि मुनियों के मुख से निकला, तब तक कुछ भी खास नहीं था। दिमाग में घुस ही नहीं रहा था। लेकिन जब से विदेशियों ने इसको ‘योगा’ जैसे म्यूजिकल टैग का चोगा पहना कर पुनः अवतरित करवाया तो हम आल्हादित हो उठे। अहा! फिर तो क्या आनंद आया हमें, शीर्षासन करने में। चटाई से योगा मैट तक का सफर तय करने में ‘बेचारे’ योगासन को अमेरिका तक का चक्कर काटकर नए नाम के साथ भारत आना पड़ा तब कहीं जाकर हमने उस को गले लगाया।

लगभग यही हाल आयुर्वेद का भी है। कोरोना ने भले ही दुनिया को कितना भी परेशान किया हो, लेकिन एक बात तो तय है। उसके चलते आयुर्वेद ने कई नए नामों के साथ और अंग्रेजी का चोगा पहनकर हमारे जीवन में एक हीरो के रूप में एंट्री ले ही ली है। आज इम्यूनिटी बूस्टर टैग के साथ कई प्राचीन नुस्खे हमारे जीवन में जगह बनाने लगे हैं।

हमारे पास में किसी प्राचीन ज्ञान या सनातन वैभव के लिए शुक्रगुजार होने का मौका या कारण होता भी नहीं है। नकारात्मकता हमें चुम्बक की तरह खींचती है। हम रोना रोने में माहिर हैं। किसी से बिजनेस का हाल पूछो तो जवाब मिलेगा, “हाल बहुत खराब है। सब कुछ ठंडा है। मार्केट में जान ही नहीं है।” और फिर सत्यनारायण जी की कथा के अनुसार वैसा ही सच में घटित भी होने लगता है। याद है ना आपको! वो सेठ, जिसने अपनी नाव में धन होने के बावजूद लता-पत्ता होने की बात कही और सच में वैसा हो भी गया।

अक्सर महंगाई या फिर आर्थिक परेशानियों का रोना रोने वाले, हम लोग, बहुत सहज तरीके से परिस्थितियों आसपास के लोगों या फिर सरकार पर अपनी परेशानियों की जिम्मेदारी डाल कर थोड़ा रिलीफ महसूस करने की कोशिश करते है।

लेकिन क्वांटम फिजिक्स जैसे वैज्ञानिक सिद्धांत अब जबकि ये सिद्ध कर चुके हैं कि विचारों की फ्रीक्वेंसी हमारे कार्यों के परिणाम को प्रभावित करती है। अब जब पश्चिम के अंग्रेजीदां विचारक गीता में कृष्ण के उपदेश को नए पैकेज में ला चुके हैं। जब बताया जा चुका है कि नकारात्मकता और सकारात्मकता दोनों ही एक छूत की तरह तेजी से फैलती है… तो क्यों नहीं हम अपने आज के बारे में कुछ अच्छा बोलें और सोचें।

शुरुआत खुद के क्षेत्र मालाणी और खुद के जिले बाड़मेर से ही करें। ये स्वीकार करें कि बाढ़ाणा राजस्थान की आर्थिक राजधानी बना हुआ है और आने वाले साल समृद्धि से भरपूर हैं। मन में उठ रही शंकाओं को एक बार दूर कर दें। ‘रोवतो जावे, मरिया री खबर लावे’ जैसी गूढ़ कहावत नहीं मानते हैं तो क्वांटम फिजिक्स के विदेशी शोध के आधार पर ही सही, ये कर के देखें… सुकून मिलेगा।

* अयोध्या प्रसाद गौड़

Source: Barmer News

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