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टूडे-स्पेशल
रतन दवे
बाड़मेर पत्रिका.
7 दिसंबर 1971…। नवीं कक्षा का एक छात्र छाछरो (पाकिस्तान)में पढ़ रहा था। भारतीय सेना यहां पहुंची।सेना के यहां कब्जा करने के बाद तय हुआ था कि मुख्यमंत्री बरकतुल्लाखां यहां हफ्तेभर बाद आएंगे। सेना ने तय किया कि छात्र राष्ट्रगान गाएंगे। छात्रों को राष्ट्रगान नहीं आता था तो सेना ने नवीं कक्षा के छात्र श्रवण छंगाणी और घनश्याम महेश्वरी को राष्ट्रगान सिखाया और छाछरो में पहना राष्ट्रगान तात्कालीन मुख्यमंत्री के सामने गर्व से गाया गया। श्रवण छंगाणी परिवार सहित भारत आ गए। यहां बाड़मेर के बेरियों का वास में रहते है और प्रारंभिक जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में एबीइओ पद से सेवानिवृत्त हुए है। छंगाणी को आज भी वो पल रोमांचित,गौरवान्वित करता है। वे कहते है जैसे कल की बात हों, मैं सीना तानकर छाछरो की स्कूल में पहली बार जन-गण-मन-अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता का गान कर रहा हूं…। श्रवण छंगाणी बताते है कि 25 हजार की आबादी के छाछरो कस्बे में पालिका थी और पाकिस्तानी रैंजर्स की बटालियन। बैंक की शाखा भी थी। यहां पाक रैंजर्स की गतिविधियां बढ़ रही थी। पता चला कि भारतीय सेना आने वाली है, पाकिस्तान पर कब्जा हो रहा है। यह खबर आते ही यहां से पाक रैंजर्स की बटालियन भाग छूटी। बैंक के कर्मचारी व अन्य भी भाग गए। उस रात हम सोए नहीं थे, सब इंतजार कर रहे थे कि छाछरो में भारतीय सेना आ रही है। मुझे याद है 70-80 भारतीय सैनिक 7 दिसंबर की सुबह आए। उन्होंने कहा कि सब सुरक्षित है कोई फिक्र नहीं करें। अब भारतीय सेना का कब्जा हो गया है। भारतीय सेना के नायक ब्रिगेडियर भवानीङ्क्षसह आगे नगरपारकर चले गए थे।
सेना ने सिखाया जन-गण-मन
सेना के जवान यहां रुके थे और बताया कि हफ्तेभर में मुख्यमंत्री बरकतुल्लाखां आने वाले है। स्कूल में कार्यक्रम होगा। भारतीय राष्ट्रगान गाना है। स्कूल से मेरा और घनश्याम महेश्वरी दो जनों का चयन हुआ। हमें राष्ट्रगान सिखाया गया। हफ्तेभर बाद मुख्यमंत्री आए तो भारत माता के जयकारे लगाने के बाद हमने पहली बार छाछरो में राष्ट्रगान गाया। आज भी वह पल आंखों में गौरव के साथ तैरता है।
छोड़ आए छाछरो
भारतीय सेना के कब्जे के बाद यह समाचार आने लगे थे कि शिमला समझौते में यह जमीन पाकिस्तान के हिस्से में रहेगी। हिन्दू परिवारों ने तय कर लिया था कि वे अब भारत चले जाएंगे। हमारे 25 परिवार ऊंटों पर सवार होकर दिनभर चलने के बाद देर रात चौहटन पहुंचे। दो महिने वहीं रहे। इसके बाद बाड़मेर आकर बसे। यहां भारत में रहते हुए काफी तरक्की हुई। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय बाड़मेर मेंअतिरिक्त ब्लाक शिक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत हुए श्रवण छंगाणी कहते है कि सारे परिवार खुश है, आज भी अफसोस है कि शिमला समझौते में जमीन लौटाई क्यों?

Source: Barmer News

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