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बाबूसिंह भाटी
रामसर(बाड़मेर) पत्रिका ।
ताज्जुब होगा यह सुनकर आपको कि एक पूरे रेलवे स्टेशन के भवन पर धोरों से उड़ती रेत इतनी चढ़ी कि धीरे-धीरे वो पूरा ही रेत में दफन हो गया। 1990 में रेत के धोरे में दफन हुए इस भवन की छत हाल ही में आंधियां चलने बाद रेत उड़ी तो नजर आई है। बुजुर्ग इसके बारे में जानते है लेकिन नई पीढ़ी के लिए यह ताज्जुब है कि रेलवे स्टेशन का पूरा भवन एक धोरे के नीचे दफन है।पंद्रह फीट ऊंचा रेलवे स्टेशन का पूरा भवन और चार आवास दबे हैं।
बाड़मेर-मुनाबाव रेलवे मार्ग पर बसे खड़ीन गांव में यह स्टेशन आजा़दी से पहले बनाया गया था। बंटवारे से पहले यहां जोधपुर से कराची और सादीपल्ली पाकिस्तान तक ट्रेनें चला करती थीं। आज़ादी के बाद यह रेल मार्ग बंद हो गया।
1978 के आसपास यह रेलवे स्टेशन रेत में दफन होना शुरू हुआ। 1990 तक पूरा स्टेशन भवन रेत के टीले में समा चुका था। बाद में वर्ष 2006 में जब इस मार्ग को मीटर गेज से ब्रॉडगेज किया गया तो रेलवे ने दूसरा रेलवे स्टेशन भी बनवा दिया।
रेत से बाहर निकली छत
आंधियां चलने से रेत के टीले ने बीते समय में जगह बदली तो पहली बार इस स्टेशन का एक हिस्सा सामने आया। जब पड़ताल हुई तो पता चला स्टेशन दफन है ।अब धीरे धीरे स्टेशन की छत दिखाई देने लगी है ।

Source: Barmer News

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