बाड़मेर. जिले में पिछले तीन-चार दिन से सर्दी का असर बढऩा शुरू हो गया है। जल्द ही शीतलहर और पाले का प्रकोप दिखाई देगा। शीतलहर और पाले का असर सबसे अधिक किसानों पर पड़ता है। जब सर्दी चरम पर होती है तो उस समय किसानों के सामने अपनी फसल को बचाने की चिंता सताने लगती है। कृषि विज्ञान केन्द्र गुडामालानी के प्रभारी डॉ. प्रदीप पगारिया ने बताया कि कड़ाकेदार सर्दी में फसलों पर पाला पडऩे की संभावना बढ़ जाती है। जब आसमान साफ हो, हवा न चले और तापमान कम हो जाए तब पाला पडऩे की संभावना बढ़ जाती है। पाले से बचने के लिए किसी भी तरह से वायुमंडल के तापमान को शून्य डिग्री सेल्सियस से ऊपर बनाए रखना जरूरी है। ऐसा करने के कुछ उपाय सुझाए गए हैं, जिन्हें अपनाकर हमारे किसानज्यादा लाभ उठा सकते हैं। जब खेत में खड़ी बारानी फसल में पाला पडऩ़े की आशंका हो तो पव्यावसायिक गंधक के तेजाब का 0.1 प्रतिशत का छिडक़ाव करें। इस प्रकार इसके छिडक़ाव से फसल के आसपास के वातावरण में तापमान बढ़ जाता है और पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।पाले से सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में होता है।
नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि गांव में पुआल का इस्तेमाल पौधों को ढकने के लिए किया जा सकता है।
पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिण-पूर्वी भाग खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे। पुआल का प्रयोग दिसंबर से फरवरी तक करें। मार्च का महीना आते ही इसे हटा दें। नर्सरी पर छप्पर डालकर भी पौधों को खेत में रोपित करने पर पौधों के थावलों के चारों ओर कड़बी या मूंज की टाटी बांधकर भी पौधों को पाले से बचाया जा सकता है।
डॉ. लखमाराम चौधरी ने बताया कि पाले से बचाव के लिए खेत के चारों दिशाओं में मेड़ पर पेड़ व झाडिय़ों की बाड़ लगा शीतलहर से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। अगर खेत के चारों ओर मेड़ पर पेड़ों की कतार लगाना संभव न हो तो कम से कम उत्तर-पश्चिम दिशा में पेड़ की कतार लगानी चाहिए।
गंगाराम माली ने बताया कि जब भी पाला पडऩ़े की संभावना हो या मौसम विभाग की आर से पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
जहां पर सिंचाई फव्वारा विधि से की जाती है वहां यह ध्यान रखने की बात है कि सुबह 4 बजे तक अगर फव्वारे चलाकर बंद कर देते हैं तो सूर्योदय से पहले फसल पर बूंदों के रूप में उपस्थित पानी जम जाता है और फायदे की अपेक्षा नुकसान अधिक हो जाता है। अत: फव्वारों को जल्दी प्रात:काल से सूर्योदय तक लगातार चलाकर पाले से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
Source: Barmer News