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जोधपुर. जेएनवीयू की बाबा रामदेव शोधपीठ और राजस्थानी विभाग की ओर से राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। अध्यक्षीय उद्बोधन में विवि के कुलपति प्रो प्रवीण चंद्र त्रिवेदी ने कहा कि विश्व की सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए। अपनी मातृभाषा का गौरव और महत्व कभी भी नहीं भूलना चाहिए। मातृभाषा-साहित्य में हमारी संस्कृति के सजीव दर्शन होते हैं।
वेबिनार संयोजक डॉ. गजेसिंह राजपुरोहित और डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने बताया कि ‘आधुनिक राजस्थानी गद्य विद्या: एक दीठ’ विषयक राष्ट्रीय वेबीनार में बीकानेर से ख्यातनाम कवि-आलोचक नीरज दइया बीकानेर ने कहा कि प्रत्येक व्यंग्यकार समाज तथा देश में व्याप्त कुरीतियों, कुप्रथाओं, अत्याचार तथा अन्याय के खिलाफ किसी चरित्र के मार्फत सार्वजनिक चोट करता है, जिसका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हिंदी और राजस्थानी साहित्य में कहानी का सृजन लगभग एक साथ ही प्रारंभ हुआ था, मगर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं होने से राजस्थानी रचनाकार को दोहरा संघर्ष करना पड़ रहा है। ख्यातनाम आलोचक डॉ. शारदा कृष्ण सीकर ने राजस्थानी उपन्यास साहित्य पर शोध की आवश्यकता पर बल दिया। कोटा से जितेन्द्र निर्मोही कोटा ने कहा कि राजस्थानी संस्मरण हमारी सांस्कृतिक विरासत है। राजस्थानी विभाग की डॉ. धनंजया अमरावत ने उपन्यास साहित्य पर विचार व्यक्त किए।

Source: Jodhpur

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