जमीन मिले तो वीरता के तीन स्मारकों को जीने लगेगा थार
बल्र्ब- 1971 के भारत-पाक युद्ध में बाड़मेर साक्षी रहा। सेना,बीएसएफ, पुलिस और आम आदमी ने यहां अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए विजय हासिल की। वीरों की इस धरती के शहीद और जाबांज सैनिकों के साहस की कहानियां आज भी कण-कण में गाई जाती है लेकिन इन शहीदों व वीरों के शौर्य के लिए स्टेच्यु, सर्किल और स्मारक बनाने की आज भी दरकार है। जिले के एक मात्र महावीर चक्र विजेता और फक्र-ए-हिन्द लेफ्टिनेंट जनरल हणूतसिंह के नाम स्टेडियम, बायतु में 10 शहीदों के लिए शहीद स्मारक और सबसे बड़ा गौरव का क्षण होगा जब बाड़मेर में वार म्युजियम के लिए जमीन मिलेगी। इसको लेकर प्रशासनिक स्तर पर कार्यवाही को गति मिले तो 1971 के युद्ध की स्वर्णजयंती वर्ष में ही सारे गौरव बाड़मेर के पास हों और यहां पर्यटन विकास को भी पंख लगे।
बाड़मेर पत्रिका.
वार म्युजियम
करीब तीन साल पहले वार म्युजियम बाड़मेर में स्थापित करने की मांग उठी। तात्कालीन जिला कलक्टर हिमांशु गुप्ता और उसके बाद विजयदिवस पर अंशदीप ने इसके लिए कार्यवाही को आगे बढ़ाया। वार म्युजियम के लिए रावत त्रिभुवनङ्क्षसह के प्रयास के चलते टैंक, बीएसएफ के साजो सामान, एयरफोर्स, आर्मी और पुलिस वर्दी, फाइटर विमान मिग 21, हथियार, शहीदों से संबंधित जानकारी और अन्य सामग्री के लिए सेना, बीएसएफ, पुलिस और पूर्व सैनिकों की ओर से पूरी मदद की तैयारी कर दी गई है लेकिन इसके लिए जमीन के लिए प्रशासन के पास फाईल अटकी हुई है।
जमीन मिले तो बात आगे बढ़े
बाड़मेर-जैसलमेर रोड़ पर मेडिकल कॉलेज के पास में जमीन तलाश की जा रही है इसके अलावा भी ऐसी जगह पर जहां पर्यटन विकास को बढ़ावा मिले वहां वार म्युजियम स्थापित करने के लिए जमीन की जरूरत है।
यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी
फेजलका पंजाब में सिविल प्रशासन की ओर से देश का पहला वार म्युजियम बना है। बाड़मेर इस उपलब्धि को हासिल करता है तो यह देश का दूसरा वार म्युजियम होगा। सेना,बीएसएफ और पुलिस की ओर से पूरी मदद है। जमीन मिलने के बाद वार म्युजियम के लिए अन्य सामग्री उपलब्ध हो जाएगी। बाड़मेर 1971 के युद्ध का साक्षी है तो बाड़मेर के पर्यटन विकास को भी इससे बड़ा फायदा होगा।- रावत त्रिभुवनसिंह
लेफ्टिनेंट जनरल हणूत
जसोल गांव में 6 जुलाई 1933 को जन्मे हणूतसिंह ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया। 1965 के युद्ध में पाकिस्तान की 48 टैंक रेजीमेंट को नस्तेनाबूद कर दिया और उन्हें फख्र्र-ए-हिन्द से नवाजा गया। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की वीरता के लिए उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा शौर्य सम्मान महावीर चक्र मिला। जिले के वे एकमात्र महावीरचक्र विजेता है। सेवानिवृत्ति बाद देहरादून में संत जीवन जीते रहे। पूना हॉर्स रेजिमेंट ने उनके गौरव के लिए उनके पैतृक गांव जसोल में सेना का एक टैंक उनके निवास पर स्थापित किया है।
पूर्व सैनिकों की मांग रखो स्टेडियम का नाम
पूर्व सैनिकों ने जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के जरिए जिला प्रशासन से भी मांग की है कि जिले के एकमात्र महावीर चक्र विजेता लेफ्टिनेंट जनरल हणूतसिंह के नाम आदर्श स्टेडियम का नाम रखा जाए। जिला मुख्यालय पर उनके नाम से एक विशेष स्मारक स्थल बनाया जाए। इसको लेकर पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड ने सेना को भी पत्र लिखा। इसके लिए दस एकड़ तक जमीन की दरकार सामने आई है। जिला प्रशासन ने भी इस मामले में प्रस्ताव सरकार को भेजा है।
बायतु के शहीदों का बने स्मारक
1971 के युद्ध में बायतु क्षेत्र के 10 जवानों ने प्राण न्यौछावर किए। कई शहीदों की पार्थिव देह भी वापस नहीं आई। इन शहीदों के उनके गांव में तो स्मारक बने है लेकिन बायतु उपखण्ड मुख्यालय पर दस शहीदों के लिए विशेष स्मारक नहीं है। राजस्थान पत्रिका ने इस मुद्दे को सामने लाया तो राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने बायतु में शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की। इसको लेकर भी जिला प्रशासन को फाइल दी हुई है। यहां टैंक स्थापित करने और शहीदों की याद में स्मारक बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे है।
Source: Barmer News