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घूंघट और घर की दहलीज को भरोसा देती…लता बहिनजी
बल्र्ब- महिला दिवस 8 मार्च को है। जिले में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए नेतृत्व करने वाली कई महिलाएं है। किसी ने पूरी उम्र दे दी है तो कोई संघर्ष की कहानी बनी हुई है। विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रही इन महिलाओं की कहानियां पत्रिका के महिला सप्ताह में पढ़कर जानिए बाड़मेर में महिला सशक्तिकरण का दौर।
-671 स्वयं सहायता समूह बनाएं
– 10 से अधिक महिलाओं को कशीदाकारी से रोजगार
– 1985 से रेगिस्तान में महिलाओं के बीच काम
फोटो समेत
बाड़मेर पत्रिका.
लता बहिनजी….सीमांत के वे गांव जहां महिलाओं का घूंघट उठाना गुनाह है और घर से बाहर निकलना गैर इजाजत गलत। उन इलाकों में एक नाम गूंजता है लता बहिनजी..। खुद उन घरों में करीब चार दशक से पहुंच रही है। महिलाओं के लिए काम लेकर। बीमारी में उनकी दवा पहुंचाने और यह पूछने कि वे क्या कर सकती है। अपनी उम्र रेगिस्तान की महिलाओं के दे चुकी लता कच्छवाह ने न केवल कशीदाकारी के हुनर को दाम दिए है मृण कला, खेती बागवानी और महिलाओं के सुख-दु:ख की भागीदार बनी है।
जोधपुर में जन्मी संपन्न परिवार की लता कच्छवाह एकल महिला है। एम ए इतिहास करने के बाद सामाजिक कायज़् की ललक के चलते बाड़मेर आ गई। 1984-85 में उन्होंने समाजसेवा का कायज़् हाथ में लिया। बकौल लता यहां पुरुष वचज़्स्व में महिलाओं के लिए काम करना मुश्किल था। उन्होंने सोच दी कि घर की देहरी में ही काम दिया जाए। पाकिस्तान से आई महिलाओं के पास कशीदाकारी का हुनर तो था लेकिन दाम महज दिन के तीन रुपए मिल रहे थे। सामाजिक संगठन के जरिए उन्होंने बीजराड़ में श्योर संस्थान के सेंटर के साथ कायज़् प्रारंभ किया और 10 हजार से अधिक महिलाओं को जोड़ लिया। 671 स्वयं सहायता समूह के माध्यम से रोजगार दे रही है। इन महिलाओं को अब उनके बनाए उत्पाद का दाम मिलने लगा और पिछले चार दशक से ये महिलाएं अपने घर बैठे रोजगार प्राप्त कर रही है और नई पीढ़ी जुड़ती जा रही है।
मां बनने का ददज़् दूर किया
इन महिलाओं के साथ काम करते हुए उन्होंने एक केस स्टडी की कि सुरक्षित प्रसव नहीं होने से महिलाओं को अपनी बच्चादानी निकलवानी पड़ती है या फिर महंगे इलाज में उनके खेत की जमीनें बिक जाती है। वषज़् 2006-07 में महिला आयोग की अध्यक्ष के साथ क्षेत्र पूरे का दौरा करवाया। इसके बाद यहां 108 एम्बुलेंस की सेवाएं और महिला चिकित्सा को लेकर लाभ मिलने लगा, अब स्थितियां काफी बदली है।
पानी और दूध का संघषज़्
सीमांत इलाके में महिलाओं के लिए बड़ा संघषज़् पानी का था। वे कहती है कि महिलाएं चार से पांच घंटे प्रतिदिन पानी लाने में लग जाते। इसके बाद पशुधन और घर का काम तो वे काम कब करे। सीमांत क्षेत्र में अकाल और अन्य योजनाओं में बेरियां(छोटी कुइयों) का निमाज़्ण करवाने, टांका बनाने और पानी के लिए प्रस्ताव भेजे तो पानी का संघषज़् दूर हुआ। इसके बाद डेयरी प्लांट के जरिए दूध को बाजार तक भिजवाने से महिलाओं के बटुए में धन आने लगा।
अब काम पहुंचा सात समंदर पार
दस्तकारी सामग्री की ब्रिकी में अब दिल्ली, मुम्बई, जयपुर, बैंगलोर, चण्डीगढ़, मद्रास के अलावा अमेरिका सिंगापुर, थाईलैंड, बांगलादेश, श्रीलंका तक पहुंचकर उन्होंने दस्तकारी को बाजार दिलवाया है।
कोविड में ऑन लाइन माकेज़्टिंग
कच्छवाह ने कहा कि विभिन्न फमज़् एवं बड़े-बडे प्रतिष्ठान सामान को आजकल ऑनलाईन तरीके से खरीदना पसंद करते है। विशेषकर कोविड-19 की वजह से इन साम्रगी की ऑनलाईन डिमाण्ड ज्यादा होने लगी इसलिए महिलाओं एवं उनके परिवार जनो में किसी एक सदस्य को जो इसको समझ सके को इसकी जानकारी देकर ऑनलाइन से जोड़ा गया और सामग्री प्रदशज़्नी लगाई गई तथा इसके माध्यम से सामग्री बेची गई तथा ऑनलाईन से जुड़ी अन्य जानकारीयों से रूबरू करवाया गया ।

Source: Barmer News

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