जोधपुर. भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सौजन्य से एवं राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी के तत्वावधान में सात दिवसीय ‘पाण्डुलिपि पठन एवं संरक्षण कार्यशाला के चौथे दिन रविवार को संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. सद्दीक मोहम्मद ने कहा कि पाण्डुलिपि पठन के लिए अक्षर एवं अंक ज्ञान अति आवश्यक है। यदि शोधार्थी राजस्थानी भाषा के अक्षरों की बनावट एवं अंकों का ज्ञान प्राप्त कर ले तो उन्हें पुरालेखीय सामग्री को पढऩे में आसानी होगी। उन्होंने संस्थान में स्थित विभिन्न ठिकानों की ऐतिहासिक बहियों पर प्रकाश डाला। स्वामी दयानन्द सरस्वती विवि अजमेर में इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष, प्रो. वीके वशिष्ठ के आलेख का वाचन सूर्यवीरसिंह ने किया। आलेख में मुख्य रूप से राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर और जयपुर के दस्तावेजों पर महत्वपूर्ण जानकारी व पत्र-दस्तावेजों का ब्यौरा दिया गया। कार्यशाला में कोविड-19 के दिशा-निर्देशों की पालना की गई। राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी जोधपुर के अध्यक्ष चक्रवर्तीसिंह जोजावर ने पाण्डुलिपि विशेषज्ञों को स्मृति चिह्न प्रदान किए। संस्थान के सहायक निदेशक डॉ. विक्रम सिंह भाटी पाण्डुलिपि पठन में पट्टा बहियें, हकीकत बहियें, सनद बहियें, रूक्के-परवानें पर पठन के कार्य से शोधार्थियों को बताया।
Source: Jodhpur