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जोधपुर. भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सहयोग एवं राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी के तत्वावधान में सात दिवसीय ‘पाण्डुलिपि पठन एवं संरक्षणÓ कार्यशाला के पांचवे दिन सोमवार को देश के विभिन्न जगहों से आए शोधार्थियों को मुडिय़ा लिपि का ज्ञान कराया गया। कार्यशाला में राजस्थानी शोध संस्थान के सहायक निदेशक डॉ. विक्रमसिंह भाटी ने कहा कि मारवाड़ में विभिन्न विषयों की पाण्डुलिपियां अलग-अलग शोध संस्थानों में संग्रहित है। आज उनकी संख्या कई लाखों में है। मारवाड़ में पाण्डुलिपियों का समृद्ध भण्डार रहा है। डॉ. भाटी ने तत्कालीन समय में पत्र लेखन की शब्दावली, पट्टों, बहियों की शब्दावली, भिन्न-भिन्न समय में शब्दों की बनावट में अंतर के बारे में बताया। उन्होंने विभिन्न दस्तावेजों के उदाहरण देते हुए शोधार्थियों को व्यावहारिक ज्ञान करवाया। डॉ. भाटी ने राठौड़ों की ख्यात (जोधपुर राज्य की ख्यात) से शोधार्थियों को रूबरू कराया। उन्होंने कहा कि यदि शोधार्थी पुरालेखीय सामग्री का पठन करने लगेंगे तो इतिहास के कई नवीन तथ्य सामने आएंगे।

Source: Jodhpur

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