जोधपुर. परत दर परत गिरते ऐतिहासिक गुंबद अपने अस्तित्व को खोजती मंडोर पंचकुण्डा की प्राचीन छतरिया दशकों से मरहम की अर्जी लिए खडी है। मंडोर का पंचकुंडा जोधपुर राजघराने का सदियों पूर्व से ही प्रथम प्राचीन दाह संस्कार स्थल रहा है। यहां पर तत्कालीन शासकों की ओर से अपने पूर्वजों की याद को बनाए रखने के लिए सुंदर कलात्मक छतरियों का निर्माण करवाया गया। सभी छतरियां घाटू के पत्थरों से निर्मित है। लगभग सभी छतरियों की स्थापत्य कला एक समान है।
बॉलीवुड की कई सुपर हिट फिल्मों की शूटिंग पंचकुण्डा की छतरियों में हो चुकी है। इनमें तेरे नाम, हम दिल दे चुके सनम, गुलामी सहित कई हिट फि ल्मों के लोकप्रिय गीतों का फि ल्मांकन हो चुका है।
अब तक अज्ञात है राव जोधा की छतरी
मंडोर पचकुण्डा में अधिकांश शिलालेख नष्टप्राय: होने के कारण कौन सी छतरी किसकी है यह पहचान करना मुश्किल है। यहां तक जोधपुर नगर के संस्थापक राव जोधा की छतरी भी अभी तक अज्ञात है। राव जोधा ने ही 12 मई 1459 को मेहरानगढ़ की नींव रखकर जोधपुर नगर की स्थापना की थी। करीब 23 वर्ष तक अपने पिता राव रिड़मल के साथ रहने , 15 वर्ष घोर विपत्तियों में बिताने व 35 वर्ष तक शासन के युद्धरत रहने के बाद 16 अप्रेल 1488 को 73 वर्ष की उम्र में राव जोधा का निधन हुआ था। उस समय उनके व उनके पुत्रों के राज्य की सीमा पश्चिम में जैसलमेर , उत्तर में बीकानेर हिसार तक , दक्षिण में अरावली तथा पूर्व में अजमेर तक थी । ऐसे महान शासक जोधपुर संस्थापक का स्मारक ढूंढने में हमारे इतिहासकारों को अभी तक सफलता नहीं मिली है।
स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण 46 छतरियां
्रपंचकुण्डा में स्थित 46 छतरियां पुरातात्विक एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कुछ छतरियां कलात्मक दृष्टि से भव्य नहीं है। ऐसा इसलिए संभव है कि तत्कालीन राजनैतिक जीवन में उथल.पुथल रही हो। जिसने आर्थिक विपन्नताओं को जन्म दिया हो। पंचकुण्डा के पास जोधपुर के शासकों की रानियों की शमशान भूमि होने के कारण यहां पर लगातार रानियों की स्मृति में छतरियों का निर्माण होता रहा है। छतरियों के पास मारवाड़ के पूर्व शासकों राव चूण्डा राव राणमल और राव गंगा आदि के स्मारक बने हैं। स्थापत्य कला की दृष्टि से राव गांगा देवल जैसा स्मारक पूरे मारवाड़ में अन्यत्र कहीं भी नहीं है।
जयपुर नरेश की पुत्री की छतरी आकर्षक
पंचकुण्डा पर मारवाड़ के प्रारम्भिक राजा व रानियों की छतरियां बनी है । इनमें जोधपुर कीमहारानी कच्छवाही सूर्य कंवर जयपुर नरेश प्रतापसिंह की पुत्री जिनकी मृत्यु 28 जनवरी सन 1826 को हुई थी। उनकी स्मृति में बनाई गई छतरी स्थापत्य कला की दृष्टि से बहुत सुन्दर है। छतरी में 32 खंबे लगे होने के साथ ही बीचों.बीच छोटी संगमरमर की सफेद छतरी बनाकर उसमें चरण चिह्न शिलालेख के साथ अंकित किए गए हैं।
शिलालेख खण्डित होने से पता करना मुश्किल
मंडोर पचकुण्डा में अधिकांश शिलालेख नष्टप्राय होने के कारण कौन सी छतरीकिसकी है यह पहचान करना मुश्किल है। यहां तक राव जोधा की छतरी भी अभी तक
पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है।
डॉ एमएस तंवरए सहायक प्रबंधकए महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश मेहरानगढ़
Source: Jodhpur