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रतन दवे

बाड़मेर. शहर की सरकार चुनने के लिए एक बार फिर मतदाता की ताकत उसके द्वार खड़ी है। वो मतदाता जो पिछले कई सालों से सड़क,पानी, बिजली, भूखण्ड के पट्टे से लेकर छोटी-छोटी समस्या के लिए नगरपरिषद के चक्कर काट रहा था अब उसके सामने पार्षद प्रत्याशियों ने चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं।

लोकतंत्र की यही तो खूबसूरती है कि पांच साल बाद जनता के सामने जनप्रतिनिधियों की हाजिरी होती है। अब जनता की जागरूकता यहां काम आती है। जो हाजिरी लगाने आया है, उससे सवाल पूछें ? पांच साल तक दोनों ही दलों के प्रतिनिधि थे, एक सत्ता में दूसरा विपक्ष में। दोनों की जिम्मेदारी कम नहीं थी।

सत्तापक्ष को काम करवाने थे तो विपक्ष को सशक्त होकर जनता की बात रखनी। दोनों ही इसमें कितने खरे उतरे हैं, यह तराजू जनता के पास है? पब्लिक है …सब जानती है। इसके लिए केवल पार्षद या सभापति बने वो ही जिम्मेदार नहीं है, जिम्मेदारी तो उन सबकी है जो इन विचारधाराओं से भी जुड़े हैं। जो आपसे वोट मांगने आता रहा है, उससे पूछिए कि शहर का विकास कहां है? पिछला क्यों आप तो अब आगे का एजेण्डा तैयार कीजिए?

बाड़मेर शहर में तेल-खनिज और बालोतरा के पास अब रिफाइनरी के बड़े प्रोजेक्ट हैं। तुलना कीजिए उन शहरों से जहां पर इतना बड़ा निवेश हो रहा है और कितना परिवर्तन आया है। बाड़मेर शहर में यदि तीन-चार आेवरब्रिज बन गए हैं तो बड़़ी बात नहीं है, 2005 से 2019 तक प्रदेश के हर शहर में एेसा बदलाव आया है।

जयपुर-जोधपुर से लेकर छोटे तमाम शहरों में ये सुविधाएं हो रही हैं। यदि सड़कें बनी हैं तो प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना व एनएचएआई यह परिवर्तन छोटे-छोटे कस्बों में ला चुके हंै। अतिरिक्त क्या हुआ? क्या आपके शहर में एक अच्छा पार्क है? आदर्श स्टेडियम बाड़मेर पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद आज हालात क्या हैं, जाकर देख आइए।

क्या शहर के तीनों तालाब सोननाडी, वैणासर और कारेलीनाडी के विकास की योजनाएं सिरे चढ़ी? शहर के श्मशानघाट की तस्वीर बदली है तो इसमें सार्वजनिक सहयोग और समाजसेवियों की मेहनत अलग कर दी जाए तो एेसा होता क्या? शहर के तिलक बस स्टेण्ड पर करोड़ों रुपए व्यय करने के बावजूद उसका जैसा सोचा गया था वैसा उपयोग क्यों नहीं हुआ? शहर की स्वच्छता व सुंदरता को लेकर तो जितने उलाहने दिए जाएं उतने कम हैं।

सीवरेज सिस्टम, सीसीटीवी कैमरा, अण्डर ग्राउण्ड केबलिंग सहित कई ख्वाब अधूरे हैं। इसकी असली वजह है मतदाताओं में जागरूकता की कमी।

अब वक्त आ गया है, वोट लेने के लिए आने वालों का एजेण्डा खंगालिए…सवाल कीजिए कि वार्ड और शहर में क्या करेंगे और कैसे करेंगे? कितने समय में काम होगा? कोई बड़ा नेता बार-बार आपको बरगला रहा है तो उससे पूछिए साहब…आप भी यहीं,हम भी यहीं..हर बार आते हो…स्थिति वही की वही…एेसा क्यों? ढर्रा यह है कि नेताजी बैठक लेकर भाषण झाड़ते हैं। …अब आप इस माहौल को बदलिए..नेताजी को बैठक लेने की बदले बैठा दीजिए और उनकी बैठक आप लीजिए।

सवाल करेंगे तो नेताजी वार्ड से जाते हुए भी सोचेंगे कि अब जनता ने बैठक लेना शुरू कर दिया है…। मतदान अधिकार नहीं बहुत बड़ी जिम्मेदारी है….इसे निभाने के लिए आइए मतदान करें लेकिन जागरूक मतदाता की तरह।

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Source: Barmer News

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