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दिलीप दवे/ रूपाराम सारण बाड़मेर/गिड़ा . ऊंट ,रेगिस्तान में आज से कुछ दशक पहले तक किसी परिवार की सम्पन्नता की निशानी मानी जाती थी। जिस परिवार के पास जितने ऊंट अधिक होते थे उस परिवार को उतना ही सम्पन्न माना जाता था।

राजस्थान में विशेषकर पश्चिमी राजस्थान में आवागमन के साधन से लेकर हल जोतने तक हर कार्य में रेगिस्तान का जहाज काम आता था। पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में ऊंट किसी वरदान से कम नही था, जहां मीलों दूर तालाबों व बावडिय़ों से पानी लाने का एकमात्र साधन होता था।

किसान के लिए खेत जोतने से लेकर फसल की कटाई के बाद वापस घर तक लाने में ऊंट की भूमिका होती थी।ऊंटों की संख्या में गिरावट हाल के वर्षो में संचार के साधन तथा मशीनरी के बढऩेे तथा कई अन्य कारणों से इस रेगिसतान के जहाज की संख्या में लगातार कमी आ रही हैं।

राजस्थान जैसे मरूस्थलीय राज्य में ऊंटों की संख्या में पिछले 7 सालों में 35 फीसदी की कमी हुई है। राजस्थान में 1992 में ऊंटों की संख्या 7.46 लाख थी जो 2012 में 3.26 लाख तथा 20वीं राष्ट्रीय लाइवस्टॉक गणना रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 2.13 लाख मात्र रह गई है। राजस्थान के साथ साथ अन्य राज्यों में भी ऊंटों की संख्या में गिरावट देखी गई है जिसमें गुजरात राज्य में 2012 में ऊंटों की संख्या 30 हजार थी जो 2019 में 28 हजार हो गई।

उत्तरप्रदेश में 8 हजार से 2 हजार, हरियाणा में 19 हजार से 5 हजार ऊंट रह गए हैं। यदि हम पुरे देश की बात करे तो 2012 में 4 लाख ऊंट थे जो की 20वीं राष्ट्रीय लाइवस्टॉक गणना रिपोर्ट के अनुसार 2 लाख रह गई है।

राजकीय पशुु घोषित

राजस्थान सरकार ने 2014 में ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिया और 2015 में दी राजस्थान ऊंट वध निषेध और अस्थायी प्रवास निर्यात नियमन बिल पास किया, जिसके तहत ऊंटों की तस्करी और मांस व्यापार कर रहे किसी व्यक्ति को 5 साल तक की सजा, 2000 रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन यह नियम ऊंटों के सरंक्षण की जगह उनकी घटती संख्या का कारण बन गया क्योकि राजस्थान में पुष्कर, तिलवाड़ा आदि मेलों में ऊंटों की खरीद-बिक्री की जाती हैं लेकिन इस कानून के पारित होने के बाद ऊंटों के टासर्पोटेशन पर प्रतिबन्ध लगने लगे। पुष्कर मेले में 2013 में 1700 ऊंट बेचे गए वहीं 2017 में यह संख्या 800 पर आ गई।

सरकारी योजनाए सिर्फ कागजों में

2016 में राज्य सरकार ने ऊंटों की घटती संख्या कों देखते हुए विकास योजना का अनावरण किया जिसके तहत ऊंट पालक को ऊंट के बच्चे के जन्म होने पर 3000 रुपए, जन्म के 9 माह बाद 3000 और 18 महीने बाद 4000 रुपए दिए जाते थे, वर्तमान राज्य सरकार ने इस राशि का भुगतान बंद कर दिया है। पिछली राज्य सरकार ने बजट सत्र 2018 जयपुर में ऊंटनी के दूध के प्रसंस्करण के लिए 5 करोड़ का प्रावधान रखा। इसके पीछे उद्देश्य था की आमजन को ऊंटनी का दूध आसानी से मिल सके और ऊँटपालको की आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके लेकिन योजना ठंडे बस्ते में चली गई।

कई रोगों की औषधि ऊंटनी का दूध

ऊंटनी के दूध में गुणों के कारण इसे सेहत के लिए सफेद सोना कहा जाता है। ऊंटनी का दूध डायबिटीज तथा दिल की बीमारी के लिए एक रामबाण इलाज है। ऊंटनी के दूध में फैट की मात्रा गाय के दूध की तुलना में लगभग आधी होती है जिसके चलते कॉलेस्टॉल की मात्रा भी कम होती है जो दिल के मरीजों के लिए फायदेमंद है। ऊंटनी के दूध में लेक्टोज की मात्रा काफी कम होती है जिस वजह से ये आसानी से पच जाता है। ऊंटनी के दूध में एंटीऑक्सीडेट और विटामिन सी की मात्रा ज्यादा होती है।

सरकार करे मजबूत इच्छा शक्ति से कार्य– इस विकास के भंवर में डुबते रेगिस्तान के जहाज को बचाने के लिए सरकार को मजबूत इच्छा शक्ति के साथ कार्य करना पडेगा वरना आने वाले दिनो में राजस्थान का यह राज्य पशु विलुप्त के कगार पर होगा।- डॉ. देवेन्द्र सारण पीएचडी स्कॉलर जीएडीवीएएसयू लुधियाना

Source: Barmer News

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