NAND KISHORE SARASWAT
जोधपुर. कभी कायलाना की प्यास बुझाने वाला बिजोलाई तालाब अब सूखने के कगार पर है। महाराजा तख्तसिंह के समय कायलाना के पश्चिम में निर्मित तालाब बिजोलाई जब भी वर्षाकाल में भर जाता था तो उसके ओटे का पानी कायलाना में जाता था। तालाब के लगातार सूखने से क्षेत्र में विचरण करने वाले कई वन्यजीव नीलगाय, हनुमान लंगूरों के समूह भी प्रभावित हो रहे है। तालाब में करीब 100 से अधिक संख्या में विचरण करने वाली बत्तखों में अब मात्र 25 ही बची है। इसका प्रमुख कारण लॉकडाउन में जलीय पक्षियों का आहार खत्म होना और क्षेत्र में घूमने वाले श्वानों के समूह के लगातार जानलेवा हमले है। कायलाना के पास अन्य तालाबों का वजूद भी खत्म महाराजा तख्तसिंह की पसंदीदा शिकारगाह रहे कायलाना क्षेत्र में शिकार के बाद कई विश्राम स्थल बनाए गए थे। इनमें माचिया किला सहित बिजोलाई महल, मीठीनाडी , नाजरजी का तालाब आदि का वजूद खत्म हो चुका है। क्षेत्र के नाडेलाव, नाजरजी का तालाब, मीठानाडी के बाद बिजोलाई तालाब का अस्तित्व भी खत्म होने के कगार पर है। कायलाना के कैचमेंट क्षेत्र से जुड़े बड़ली तालाब भी सूख चुका है। पर्यावरण विशेषज्ञ इसका एक कारण अंधाधुंध खनन को मानते है।
अब बचे जलीय पक्षियों को बचाने का जतन
बिजोलाई तालाब के पास मंहत किशनगिरि आश्रम से जुड़े भक्त इन दिनों बत्तखों को सुबह-शाम नियमित चुग्गे की व्यवस्था कर रहे है। बिजोलाई बालाजी मंदिर के मंहत सोमेश्वर गिरि की प्रेरणा से कुछ युवाओं ने पक्षियों के लिए भोजन की व्यवस्था का बीड़ा उठाया है।
Source: Jodhpur