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NAND KISHORE SARASWAT

जोधपुर. जिले के प्रमुख वन्यजीव बहुल क्षेत्र गुड़ा और कांकाणी में मानवीय हलचल और औद्योगिक विकास की गतिविधियां काले हरिणों और चिंकारों के लिए मुसीबत बनती जा रही है। अवैध क्रॅशर और खनन से होने वाला ब्लास्ट, भोजन- पानी की तलाश में सड़क दुर्घटना और शिकारियों के हत्थे चढऩे से लगातार संख्या कम होती जा रही है। काले हरिणों के समूह सुरक्षित आवास की तलाश में लगातार पाली जिले के गांवों की ओर पलायन करते जा रहे है। यही कारण है पाली में इनकी संख्या 1738 से ज्यादा हो चुकी है। खुद वन विभाग की वन्यजीव गणना में जिले के गुड़ा में वर्ष 2005 में कुल 1885 काले हरिण थे, वहीं अब पूरे जोधपुर जिले में ये महज डेढ़ हजार ही बचे हैं। जोधपुर सहित पाली, जालोर, बाड़मेर, जैसलमेर और सिरोही में कुल संख्या 3134 ही बची है।

फिर कहां गए ब्लेक बक
गुड़ा बड़ा तालाब, गवाई तालाब, साथरी नाडा, कांकाणी तालाब, राजपुरिया गउचर नाडी, खेजड़ली तालाब, धींगाणा नाडी व गुड़ा कंजर्वेशन क्षेत्र में दो दशक पूर्व तक 30 से 40 ब्लेक बक और चिंकारों के समूह विचरण किया करते थे लेकिन मुश्किल से 8 से 10 समूह ही नजर आते है। वनविभाग की सैन्सस में अकेले गुड़ा क्षेत्र में 8626 काले हरिण बताए गए थे। जबकि क्षेत्र में वन्यजीव संरक्षण करने वाले ज्यादातर विश्नोई समुदाय के लोग ही निवास करते है।

यह भी है कारण

जिले के काले हरिणों और चिंकारों को संरक्षित करने के लिए जोधपुर जिले के गुड़ा विश्नोइयां में 1432 बीघा 9 बिस्वा भूमि को कंजर्वेशन रिजर्व घोषित करने के 10 साल बाद भी नियमानुसार वनविभाग को भूमि का हस्तातंरण नहीं हो पाया हैं। नतीजन वन्यजीव बहुल क्षेत्र में नजर आने वाले काले हरिणों के झुण्ड लगातार खत्म होते जा रहे है।

प्राकृत आवास को बचाना जरूरी

वन्यजीव बहुल क्षेत्र कांकाणी सहित अन्य क्षेत्रों में भी स्टोन क्रॅशर और अंधाधुंध बजरी खनन से काले हरिणों के प्राकृतवास तेजी से खत्म हो रहे है। ऐसे में वन्यजीवों का पलायन और मानव वन्यजीव संघर्ष बढ़ेगा।
डॉ. हेमसिंह गहलोत, वन्यजीव विशेषज्ञ व निदेशक, डब्ल्यूआरसीएसी जोधपुर

Source: Jodhpur

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