बिलाड़ा (जोधपुर). एक समय था जब बिलाड़ा क्षेत्र को ‘मालवा के बटके` के रूप में पहचाना जाता था। पिछले एक दशक से इस क्षेत्र के सभी कुओं और नलकूपों का जलस्तर काफी गहरा चला गया है। इसका मूल कारण जसवंत सागर बांध का नहीं भरना है। यहां तक कि जालीवाड़ा, बिराई तथा बिसलपुर- पालासनी के छोटे बांध और अन्य कई एनीकट भी वर्षों से खाली हैं।
वर्ष 2007 में चली थी चादर
इस बांध पर वर्ष 2007 में चादर चली थी। लूणी बही और 110 वर्ष पुराने बांध की पाल का एक हिस्सा टूट गया। भारी जल विप्लव हुआ और सारी जलराशि 24 घंटों में बह गई। उसके बाद से अब तक 14 वर्ष के अंतराल में कभी भी बांध भरा ही नहीं। पाळ टूटने के वर्षों बाद पूरी पाळ नई बना दी गई। पेटे में अवैध नलकूप भी न्यायालय के आदेश से बंद करवा दिए।
इस वर्ष मानसून पश्चिमी राजस्थान में अब तक सक्रिय हुआ ही नहीं और ताउते तूफान के दौरान जो बारिश हुई उसके बाद अब तक मामूली बौछारें ही गिरी है। जबकि जसवंत सागर बांध भरने के लिए 3 हजार 325 एमसीएफटी पानी की आवश्यकता होती है। बांध 26 फीट भरने पर चादर चलती है।
इस बार जसवंत सागर बांध पर मात्र 27 मिलीमीटर बारिश हुई है। जालीवाड़ा बांध पर मात्र 6 मिली मीटर तथा बिराई बांध पर 1 एमएम ही बारिश हुई। जसवंत सागर बांध में अभी मात्र 9 फीट 7 इंच पानी आया। सिंचाई विभाग के अनुसार वर्ष 2016 में बांध में 10 फीट, 2017 में 13 फीट, 2018 में 6 फीट 2019 में 13 फीट, 2020 में 13 फीट पानी आया।
अनगिनत परिवारों की आजीविका का है स्रोत
यह बांध सैकड़ों-हजारों परिवारों की आजीविका का स्रोत है। इसके लबालब भरने एवं चादर चलने के बाद क्षेत्र के 50-50 कोस के कुओं का जलस्तर ऊपर आ जाता है, लेकिन बांध एक अरसे से खाली है। क्षेत्र के अन्य छोटे-बड़े सात बांध, 34 एनीकट एवं दर्जनों खडीनों में भी पानी नहीं आया। कुछ वर्षों में थोड़ा बहुत पानी आया लेकिन राज्य सरकार ने अब बांध में भरे जाने वाले पानी का 30 प्रतिशत पानी रिजर्व रखने की सीमा तय की है।
कई बांध एनीकट भी खाली
जसवंत सागर बांध के अलावा अन्य कई छोटे बांध जिनमें ओलवी बांध, पटेल नगर, बरना, रामासनी के दो बांध, रणसी गांव बांध के अलावा अन्य 24 एनीकट एवं दर्जनों खड़ीन भी है। पंचायती राज व्यवस्था मजबूत करने को लेकर इन सभी छोटे बड़े बांधों एवं एनीकट की सार संभाल एवं रखरखाव की जिम्मेदारी पंचायत समिति प्रशासन को सौंप दी।
कैचमेंट में बनाए कई बांध एवं एनीकट
जोधपुर एवं अजमेर रियासत के बीच करार था कि बांध में पुष्कर के नाग पहाड़ तथा 9 नदियों एवं 99 बाळों का जो पानी पहुंचता है उस कैचमेंट एरिया में बांध या एनिकट बनाकर जल राशि नहीं रोकी जाएगी। 1973 के बाद कई जगह एनिकट एवं बांधों का निर्माण करवा दिया। बांध के कैचमेंट क्षेत्र में भूटीयाबांध, भुम्बलीया डेम, गुलाब सागर डेम, बर बांध, शिवसागर डेम, कुर्की डेम, बीजाथल डेम, नरसिंह बासनी डेम, लाडपुरा डेम, धनेरिया डेम, रतनसिंह एनीकट, भक्तावरपुरा एनीकट, तेलिया, हाजीवास, गोदावास एनीकट, रावणयाना एनिकट सहित कई एनीकट बना देने से बांध में पानी की आवक रुक गई है।
फैक्ट फाइल
बांध का निर्माण 1889 में तत्कालीन महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय ने करवाया।
भराव क्षमता 1865 मिलियन घनफुट
कैचमेंट एरिया 13 सौ स्कवायर मील
पंचायत समिति की निगरानी में 31 एनीकट, तालाब , बांध एवं खडीन
बांध से सिंचित क्षेत्र 4574 किसानों की 28 हजार 694 बीघा जमीन
13 गांव के किसानों की जमीन में होती रही है पिलाई
बांध की दो नहरें भावी नहर, पड़ासला नहर
जब-जब भरा बांध और चली चादर
-1979 में चादर चली और पाळ टूटी
-1983 में चार फीट की चादर चली।
-1996 में चादर चली
-वर्ष 2000 में चादर चली
-2007 में बांध भरा, चादर चली और पाळ का बड़ा हिस्सा टूटा।
Source: Jodhpur