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NAND KISHORE SARASWAT

जोधपुर. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया 9 सितम्बर को हरतालिका तीज मनाई जाएगी। भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। हरतालिका तीज को कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर और सुहागिनें सौभाग्य के लिए व्रत करती हैं। हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। सौभाग्य की प्राप्ति किए जाने वाला व्रत जोधपुर में प्रवासरत उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश व नेपाली समाज की महिलाएं करती रही है लेकिन अब यह व्रत स्थानीय महिलाओं में भी प्रचलित हो चुका है। हरतालिका तीज व्रत में भी मारवाड़ में मनाए जाने वाली हरियाली तीज और कजळी तीज की तरह ही गौरी-शंकर की पूजा की जाती है।

थोड़ा कठिन माना जाता है व्रत

हरतालिका तीज का व्रत कठिन है। महिलाएं 24 घंटे से भी अधिक समय तक निर्जला व्रत करती हैं। यही नहीं रात के समय महिलाएं जागरण करती हैं और अगले दिन सुबह विधिवत पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत खोलती हैं। मान्यता है कि हरतालिका तीज का व्रत करने से सुहागिन महिला के पति की उम्र लंबी होती है जबकि कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर मिलता है। यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है।

पूजन का शुभ मुहूर्त

हरतालिका तीज तिथि गुरुवार 9 सितंबर

सुबह पूजा मुहूर्त -6.03 से सुबह 8.33 तक

प्रदोषकाल पूजा – शाम 06.33 से रात 8.51

तृतीया तिथि प्रारंभ- 9 सितंबर, सुबह 2.33

तृतीया तिथि समाप्त – 10

सितम्बर को 12.18 बजे

हरतालिका तीज का महत्व

अलग अलग समय पर मनाई जाने वाली तीजों में हरतालिका तीज का विशेष महत्व माना गया है। हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल यानी कि दिन-रात के मिलने का समय होता है। हरतालिका तीज के दिन इस शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। अखिल भारत नेपाली एकता मंच की ओर से हरि तालिका तीज पर पारम्परिक नेपाली लोकगीतों पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम व शिव पार्वती पूजन का आयोजन होता है।

Source: Jodhpur

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