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जोधपुर. प्रदेश में सरकार अंग्रेजी मीडियम स्कूलें खोल रही है, लेकिन हालात ये भी हैं कि प्रदेश के ७ हजार स्कूलों में हिंदी-अंग्रेजी विषयों के व्याख्याता तक नहीं है। कक्षा ९-१० को हिंदी-अंग्रेजी पढ़ाने वाले वरिष्ठ अध्यापकों से विभाग कक्षा ११-१२वीं के व्याख्याता स्तर की पढ़ाई बच्चों को करवा रहा है।
शिक्षा विभाग में साल २०१५ से लागू स्टाफिंग पैटर्न में नवक्रमोन्नत उच्च माध्यमिक स्कूलों में अनिवार्य हिंदी-अंग्रेजी को छोडक़र केवल तीन एेच्छिक विषय व्याख्याता के पद दिए गए हैं। इस पैटर्न में प्रावधान रखा गया था कि तीन वर्ष बाद कक्षा ११-१२ में ८० स्टूडेंट्स होने पर अंग्रेजी-हिंदी अनिवार्य व्याख्याता के पद दिए जाएंगे। गत छह सालों में ७ हजार से अधिक सीनियर सैकंडरी स्तर तक स्कूल क्रमोन्नत हुए हैं, यहां अंग्रेजी-हिंदी अनिवार्य व्याख्याता के पद स्वीकृत नहीं हुए हैं। इसका सीधा खामियाजा विद्यार्थियों को उठाना पड़ रहा है। विशेषज्ञों के अभाव में छात्रों की हिंदी-अंग्रेजी पर पकड़ कमजोर हो रही है।

अंग्रेजी अच्छी हो तो आगे अच्छा प्लेटफार्म बनता है
शिक्षा विभाग अंग्रेजी विषय में विद्यार्थियों का बंटाधार कर रहा है। जबकि माना जाता हैं कि स्कूल के बाद विद्यार्थियों की अंग्रेजी अच्छी हो तो उनका आगे कॉलेज की पढ़ाई और फिर नौकरी में अच्छा प्रभाव पड़ता है। लेकिन विभाग जुगाड़ पद्धति से अपना कार्य चला रहा है।

कंपीटिशन में सीसै स्तर के पूछते हैं प्रश्न
नव क्रमोन्नत उमावि में अनिवार्य विषय हिंदी-अंग्रेजी के व्याख्याताओं के पद स्वीकृत नहीं है। वरिष्ठ अध्यापक पढ़ा रहे हैं। जो स्नातक होते हैं और उन पर अनावश्यक दबाव रहता है। अधिकांश कंपीटिशन एग्जाम में सीनियर सैकंडरी लेवल के प्रश्न पूछे जाते है। लेकिन सब्जैक्ट एक्सपर्ट के अभाव में इसका खामियाजा स्टूडेंट्स को भुगतना पड़ता है। साथ ही पद स्वीकृति के अभाव में इंग्लिश लिटरेचर की डिमांड भी नहीं भेजी जाती। पूरे शहर में दो-तीन स्कूलों में ही ये विषय है, जबकि इंग्लिश लिटरेचर एम्प्लॉयमेंट जनरेट करने में सबसे ज्यादा सहायक होता है।

– नवीन देवड़ा, जिलाध्यक्ष, रेसला
इनका कहना हैं…
जो भी समस्या आ रही है, उसके लिए उच्चाधिकारियों को अवगत करवाएंगे।
– प्रेमचंद सांखला, संयुक्त निदेशक, स्कूल शिक्षा, जोधपुर मंंडल

Source: Jodhpur

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