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अविनाश केवलिया/जोधपुर. शहर को हरा-भरा करने के लिए हर साल करोड़ों रुपए की राशि सरकारी एजेंसियां खर्च करती हैं। इनमें से महज कुछ प्रतिशत ही प्रतिफल देती है, बाकी हरियाली के नाम पर हर साल करोड़ों के टैंडर होते हैं। इसमें चांदी कूट रहे हैं कुछ निजी पौधशाला संचालक और कुछ ठेकेदार।
यह बात इस बात से साफ होती है कि शहर के अधिकांश डिवाइडर पर हरियाली न के बराबर है। यहां पिछले साल पौधे लगे वो भी सूख चुके हैं। नगर निगम और जेडीए सहित सार्वजनिक निर्माण विभाग भी हर वर्ष लाखों रुपए के टैंडर सिर्फ हरियाली के लिए करता है। लेकिन इस कार्य की न तो नियमित मॉनिटरिंग होती है और न ही रखरखाव। लिहाजा हर साल पौधे लगाने के लिए बजट जारी होता है और फिर उस पर पानी फेर दिया जाता है। इस बार भी जेडीए व निगम में कुछ एेसे ही पौधरोपण के टैंडर हुए हैं।

केस १
विवेक विहार योजना जिसे प्रदेश की सबसे बड़ी सरकारी आवासीय योजना बताया जा रहा है वहां पिछले ८ साल में रहवास नहीं हो पाया। यहां विकास के दावे हुए, लेकिन बसावट नहीं हो पाई। अब इस पर जेडीए १.२६ करोड़ में पौधरोपण करवाने जा रहा है। इतनी बड़ी रकम पौधों पर लगाई जा रही है, जिसमें तीन साल का रखरखव शामिल है।

केस २
नगर निगम दक्षिण ने हाल ही में प्रत्येक वार्ड में पौधे लगाने का अभियान चलाया था। भामाशाहों के सहयोग व कुछ राशि निगम ने टैंडर करते हुए जारी की। करीब ३०-४० लाख खर्च किए गए हरियाली के लिए, लेकिन इसके बावजूद कोई ध्यान नहीं दे रहा।

एक पौधा २०० से एक हजार का
सार्वजनिक पौधारोपण के जो टैंडर किए जा रहे हैं उसमें एक पौधे का खर्च २०० रुपए से लेकर एक हजार रुपए तक आ रहा है। जबकि यदि पौधा सरकारी एजेसियां जैसे वन विभाग की नर्सरी से लिया जाता है तो वह महज १० रुपए से १०० रुपए तक में भी उपलब्ध हो जाता है।

पत्रिका अपील :: मौका सरकारी एजेंसी को भी मिले
हरियाली बढ़ाना और इसका संरक्षण करने का मूल काम वन विभाग का है। यदि एक बार प्रयोग के तौर पर इनको जिम्मेदारी दी जाए तो पौधरोपण की लागत भी कम आएगी और सरकारी एजेंसी की मॉनिटरिंग भी कम हो सकेगी। जितना खर्च वर्तमान में पौधरोपण का हो रहा है वह घट कर एक चौथाई रह सकता है। यदि यह संभव नहीं हो तो जिन निजी फर्म को हरियाली के वर्क ऑर्डर दिए जा रहे हैं, उनकी मॉनिटरिंग होनी चाहिए। यदि डिफाल्ट निकलता है तो उन पर जुर्माना भी लगाना चाहिए।

Source: Jodhpur

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